मंगलवार 30, जुलाई 2019चीन की जिस परियोजना के दम पर पाकिस्तान खुद को आर्थिक रूप से समृद्ध करने का ख्वाब देख रहा है, वही उसके लिए सिरदर्द बनती जा रही है। दरअसल, ग्वादर बंदरगाह पर चल रहे चीन के काम की वजह से बलूचिस्तान में बेरोजगारी तेजी से बढ़ी है। इस गलियारे की वजह से पाकिस्तान को आर्थिक रूप से कमजोर होने का खतरा महसूस होने लगा है। इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के मुताबिक चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा चीन के हितों को पाकिस्तान के हितों से ऊपर रखता है। लिहाजा इससे चीन को फायदा होगा, लेकिन पाकिस्तान के कई प्रांतों को इससे काफी नुकसान हो रहा है।
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के तटीय कस्बे ग्वादर और इसके आसपास के इलाके को 1958 में पाकिस्तान सरकार ने ओमान से खरीदा था। इस तटीय क्षेत्र के एक बड़े बंदरगाह बनने की संभावनाओं की बात उस समय शुरू हुई जब 1954 में एक अमेरिकी भूगर्भ सर्वेक्षण में ग्वादर को डीप-सी पोर्ट के लिए एक बेहतरीन स्थान बताया गया था। तब से ग्वादर को बंदरगाह के रूप में विकसित करने की बातें तो होती रहीं लेकिन जमीन पर काम दशकों बाद साल 2002 में शुरू हुआ।
उस वक्त सेना अध्यक्ष रहे जनरल परवेज मुशर्रफ ने ग्वादर बंदरगाह के निर्माण कार्य का उद्घाटन किया था और 24 करोड़ डॉलर की लागत से यह परियोजना 2007 में पूरी हुई। सरकार ने इस नए बंदरगाह को चलाने का ठेका सिंगापुर की एक कंपनी को अंतरराष्ट्रीय बाजार में नीलामी के बाद दिया।
ग्वादर बंदरगाह पहली बार विवाद और संदेह की चपेट में तब आया जब 2013 में पाकिस्तान सरकार ने इस बंदरगाह को चलाने का ठेका सिंगापुर की कंपनी से लेकर एक चीनी कंपनी के हवाले कर दिया। विशेषज्ञ इस मामले की पारदर्शिता पर आज भी सवाल उठाते हैं। यह वह दौर था जब पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर चीनी निवेश की बातें सामने आने लगीं।
जब नवाज शरीफ के नेतृत्व में सरकार बनी तो उसने बताया कि चीनी सरकार ने पाकिस्तान में अरबों डॉलर के निवेश का इरादा जताया है। इस परियोजना को चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर का नाम दिया गया और इसके तहत चीन को ग्वादर बंदरगाह से जोड़ने की योजना बनाई गई। 2015 में इस समझौत पर हस्ताक्षर हुआ और तब पता चला कि इस परियोजना में सड़कें, रेलवे और बिजली परियोजनाओं के अलावा कई विकास परियोजनाएं शामिल हैं। . .इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप (आईसीजी) की रिपोर्ट में दावा किया गया कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) की वजह से बलूचिस्तान के स्थानीय लोग बेरोजगार और बेघर हो रहे हैं। इसकी मुख्य वजह सीपीईसी वाले क्षेत्र में बड़ी संख्या में सेना की तैनाती है। स्थानीय लोग परियोजना का लगातार विरोध कर रहे हैं। सीपीईसी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के गिलगित-बाल्तिस्तान इलाके से गुजरता है, जिस पर भारत का दावा है। इसी वजह से परियोजना को लेकर भारत शुरू से ही आपत्ति जताता रहा है।
15 हजार सैनिकों को किया गया है तैनात
इससे पहले भी खबरें आ चुकी हैं कि 9000 पाकिस्तानी सैनिकों और 6000 पैरामिलिट्री सैनिकों वाले Special Security Division (SSD) को CPEC प्रोजेक्ट और उसपर काम कर रहे चीनी नागरिकों की सुरक्षा के लिए तैयार किया गया है।
पर्यावरण को क्षति
बलूचिस्तान और सिंध प्रांत का मानना है कि इस परियोजना के तहत बनने वाले रास्तों, इंफ्रास्ट्रक्चर और औद्योगिक प्रोजेक्ट का अधिकतर फायदा पंजाब प्रांत को मिलेगा, जो कि पहले से ही देश का सबसे धनी और राजनीतिक रूप से ताकतवर प्रांत है। सिंध में कोयला आधारित बिजली संयंत्र लगाने से न सिर्फ यहां पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, बल्कि लोगों को भी अपना घर छोड़कर जाना पड़ रहा है।। ग्वादर बंदरगाह से कम मुनाफे की आशंका के चलते पहले से अशांत बलूचिस्तान में और अशांति फैल सकती है। रिपोर्ट में सलाह दी गई है कि सरकार को इस प्रोजेक्ट का विरोध करने वाले लोगों पर अत्याचार और उनकी गिरफ्तारी पर भी रोक लगानी चाहिए, क्योंकि यह प्रोजेक्ट सामाजिक बंटवारे, राजनीतिक गतिरोध और नए संघर्षों की वजह बनता जा रहा है।सिंगापुर जैसा बनाने का झांसा
चीन ने पाकिस्तान को समझाया कि गवादर बंदरगाह पूरा होने पर पाकिस्तान, सिंगापुर और हांगकांग से ज्यादा समृद्ध हो जाएगा। यह केवल उसकी आंखों में धूल झोंकने के बराबर था। चीन वास्तव में पाक के जरिए कई पड़ोसी देशों को साधना चाहता है।