पिछड़ा मुस्लिम मोमिन समाज के प्रदेश उपाध्यक्ष प्रवक्ता मोहम्मद अकील खान ने कहा कि हिंदुस्तान में मुसलमानों की तादात कम है और जातिवाद ज्यादा हावी हो गया है।
लेकिन मुसलमानों से एक अपील करना चाहता हूं कि आप लोग एक वक्त भूखे रहकर अपने बच्चों को तालीम शिक्षा से जरूर जोड़ें क्योंकि तालीम ऐसी दौलत है जिसे कोई हमसे छीन नहीं सकता है।
और अपनी काबिलियत के दम पर आईएएस आईपीएस कलेक्टर एसडीएम तहसीलदार कमिश्नर एसपी डीएसपी तो जरूर बन सकते हैं लेकिन मुसलमानों में तो सिर्फ एक आदत सी बन गई है।
कि तालीम से शिक्षा से कोसों दूर चले गए हैं क्योंकि तालीम के नजरिए से मुस्लिम समाज आज बहुत ही पिछड़े है क्योंकि मुसलमानों के पास न तो दीनी तालीम और न दुनियावी तालीम से महरूम हैं।
प्रवक्ता मोहम्मद अकील खान ने कहा कि इसके लिए हमारे कौम के रहबर भी कुछ हद तक जिम्मेदार हैं लेकिन मेरी कौम के बच्चे घंटों बैठकर पढ़ाई नहीं कर सकते हैं अगर मैं पढ़ने लग गया तो चौराहों की रौनक खत्म हो जाएगी जो मैं होने नहीं दूंगा मैं पढ़ गया तो गुटका ताश पत्तियां छूट जाएंगी जो कि मैं छोड़ना नहीं चाहता मैं पढ़ गया तो मोहल्ले की रौनक कम हो जाएगी दिनभर की आवारागर्दी इन्हीं मोहल्लों में तो क ता हूं मैं हां काम नहीं है मेरे पास तो क्या फर्क पड़ता है।
अल्लाह ताला दो वक्त की रोटी तो खिला ही देता है न हां मैं मुसलमान हूं और पैदा होते ही एक सील ठप्पा लग गया था मेरी तशरीफ़ पर कि मैं पंचर की दुकान खोलूंगा या हाथों में औजार रिंच पहने पकड़ कर गाड़ियां सुधारूंगा या बहुत ज्यादा हुआ तो दूसरों की गाड़ियां चलाऊंगा हां मैं मुसलमान हूं अपने भाइयों की टांग खिंचाई मेरा अहम काम है।
प्रवक्ता मोहम्मद अकील खान ने कहा कि आखिर मैं क्यों नहीं पढ़ा या मैं क्यों नहीं पढ़ पाया यह सवाल हो सकता है लेकिन मैं अनपढ़ हूं इसमें शक नहीं हां मैं मुसलमान हूं और हिंदुस्तान में 30 करोड़ हूं लेकिन ज्यादातर अनपढ़ गरीब गंदी बस्तियों में ही रहता हूं इसका दोष मैं दूसरों पर मड़ता हूं मैं चाहता हूं कि मेरे घर आंगन की झाड़ू लगाने भी सरकार आए मैं हमेशा सऊदी अरब दुबई जैसे देशों की दुहाई देकर अ पनी बढ़ाई करता हूं लेकिन मैंने हिंदुस्तान में खुद पर कभी कोई सुधार नहीं किया न मैं सुधारना चाहता हूं हां मैं मुसलमान हूं मैं अनपढ़ हूं क्योंकि मां बाप ने बचपन से ही गैरेज पर नौकरी लगाया और मैं गरीब घर से हूं बेहतर तालीम देने के लिए मां -बाप के रुपए पैसे नहीं है।
और मेरी कॉम तालीम से ज्यादा लंगर को तवज्जो देती है को खिलाने मात्र को सवाब समझती है मैं मुसलमान हूं खूब गालियां देता हूं मैं रिक्शा चलाता हूं दूध बेचता हूं वेल्डिंग का काम करता हूं मैं गैरेज पर गाड़ियां सुधार ता हूं मैं चौराहे पर बैठकर सिगरेट पीता हूं ताश पत्ते खेलता हूं क्योंकि मैं अनपढ़ हूं और मैं अनपढ़ सिर्फ दो वजहों से हूं एक मां बाप की लापरवाही दूसरा कॉम के जिम्मेदारों की लापर ाही अब आप मजबूर थे लेकिन मेरी कॉम मजबूर ना थी ना है ना मैंने आंखों से देखा लाखों रुपयों के लंगर कराते हुए मैंने आंखों से देखा है लाखों रुपया कव्वाली पर उड़ाते हुए मैंने आंखों से देखा है।
बेइंतेहा फिजूल खर्च करते हुए काश मेरे मां-बाप या मेरी कॉम मेरी तालीम की फिकर मंद होती तो आज मैं प्रधानमंत्री या मंत्री ना सही लेकिन मैं आज कलेक्टर एसडीएम कमिश्नर जैसे बड़े पदों पर होता बिना वोट पाए भी लाल बत्ती नीली बत्ती में होता या कम से कम मैं डॉक्टर इंजीनियर आर्किटेक्चर एक अच्छा बिजनेसमैन तो होता ही प्रदेश उपाध्यक्ष प्रवक्ता मोहम्मद अकील खान ने कहा कि बचपन से मन में एक वहम घर क गया की मियां तुम मुसलमान हो और मुसलमानों को यहां नौकरी आसानी से नहीं मिलती आप तालीम शिक्षा हासिल करें और पढ़ें और कौम के बच्चों को पढ़ाने में मदद करें जिससे मुस्लिम कौम भी किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े एक रोटी कम खाइए पर अपने बच्चों को जरूर पढ़ाइए।