अब नहीं दिखता ईदगाह में मुंशी प्रेमचंद का हामिद - मानवी मीडिया

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Monday, May 2, 2022

अब नहीं दिखता ईदगाह में मुंशी प्रेमचंद का हामिद


गोरखपुर (मानवी मीडिया): सुप्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचन्द की कालजयी रचना ‘ईदगाह’ का पात्र ‘हामिद’ आधुनिकता के इस दौर में कहीं भी अपनी बुजुर्ग दादी के लिए मेले में ईदी के राशि से चिमटा खरीदता हुआ नहीं दिखता है। कहानी सम्राट मुंशी प्रेम चन्द गोरखपुर में रहा करते थे और यहीं ईदगाह भी थी जहां पर मेला लगता था तथा मुंशी प्रेम चन्द ने इसी मेले को कभी अपनी कहानी .ईदगाह. का कथा का प्लाट बनाया था जिसका हीरो हामिद था।

मुंशी प्रेमचन्द की कालजयी रचना .ईदगाह. आज भी सबके जेहन में है। कम ही लोगों को पता है कि वह कहानी मुंशी जी ने गोरखपुर में अपने निवास स्थान के दौरान लिखी थी। वह ईदगाह कोई और नहीं बल्कि मुबारक खां शहीद की मजार के सामने वाली ईदगाह है जो मुंशी के आवास के के पिछले हिस्से में आज भी मौजूद है। मुंशी प्रेमचन्द की रचना .ईदगाह. के मशहूर किरदार मासूम ‘हामिद’ है जिसने ईद के दिन इसी ईदगाह पर लगने वाले मेले में बुजुर्ग दादी के लिए चिमटा खरीदा था ताकि खाना बनाते समय उनका हांथ न न जले।

यूं तो गोरखपुर शहर में कई ईदगाह है मगर ईद का भव्य मेला ईदगाह मुबारक खां शहीद में ही लगता है मगर मेले में हामिद नहीं मिलता जिसका कारण है कि पिछले 100 साल में लोगों के जीवनशैली में परिवर्तन हुये है। अब हामिद जैसा मासूम बच्चा नजर नहीं आता जो ईदी के रूप में मिली धन राशि में अपनी बूढी दादी के लिए चिमटा खरीदे।

आधुिनकता की इस दौर में मेले में चिमटा भी नहीं मिलता और वह भावनात्मक लगाव भी नहीं रहा। इस दौर में खिलौनों की दुनिया में चिमटे और मिट्टी के राजा एवं सिपाही अब समाप्त हो चुके हैं और इसका स्थान इलेक्ट्रानिक खिलौने ने ले लिया है। मुंशी प्रेमचन्द की कहानी, उनका हीरो, उनका भावनात्मक चित्रण एवं प्रासंगिकता खो चुके हैं क्योकि उनका सामाजिक यथार्थ ज्यादा करकस हो गया है और मुंशी प्रेमचन्द की भावनात्मक रिश्तों का उजागर करने की परम्परा अब नहीं रही।

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