सुप्रीम कोर्ट का केंद्र सरकार को नोटिस, बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया सरल बनाने की मांग पर - मानवी मीडिया

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Monday, April 11, 2022

सुप्रीम कोर्ट का केंद्र सरकार को नोटिस, बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया सरल बनाने की मांग पर


नई दिल्ली (मानवी मीडियाकई लोगों का मन होता है कि वह ऐसे बच्चे को परवरिश दें जिसके अपने माता-पिता ना हों. वहीं कई बार खुद के बच्चे ना होने पर भी लोग ऐसी कोशिश करते हैं कि वह एक बच्चा गोद  ले लें. लेकिन हमारे देश में यह काम कहना और सोचना जितना आसान है, असलियत में उससे कई गुना कठिन है. क्योंकि भारत में बच्चा गोद  की प्रक्रिया काफी जटिल है. अब बच्चा गोद लेने की प्रकिया सरल बनाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट विचार के लिए सहमत हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. 

इतने कम बच्चे लिए जाते हैं गोद

कोर्ट में याचिका एनजीओ टेम्पल ऑफ हीलिंग की ओर से सेकेट्री पीयूष सक्सेना ने दाखिल की है. याचिका में कहा गया था कि देश भर में करीब तीन करोड़ लोग निसंतान हैं. इनमें से ज्यादातर लोग बच्चा गोद लेना चाहते हैं. इन्हीं लोगों की संख्या के बराबर तकरीबन 3 करोड़ बच्चे देश में अनाथ हैं. लेकिन इसके बावजूद हर साल सिर्फ 4 हजार बच्चे ही गोद लिए जाते हैं. याचिकाकर्ता ने अपनी दलीलों के समर्थन में मीडिया रिपोर्ट्स और CARA (सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स ऑथरिटी ) का हवाला दिया है.

हैरान करने वाले हैं आंकड़े

CARA के आंकड़ों के मुताबिक साल 2020-21 के बीच भारत में 3142  बच्चों को गोद लिया गया. जबकि 417 बच्चों को विदेशी दंपति ने गोद लिया. 2016 से 2021 के बीच पिछले पांच साल में कुल 16353 बच्चों को देश में जबकि 2693 बच्चों को देश से बाहर गोद लिया गया.

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की दलील

सोमवार को याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर दलील दी गई कि देश में बड़ी संख्या में लोग बच्चे गोद लेना चाहते हैं, लेकिन उनके पास सही जानकारी का अभाव है. मैंने सरकार को सुझाव दिया है, लेकिन उनकी तरफ से कोई एक्शन नहीं लिया गया.  उनको हमेशा ये अंदेशा रहता है कि नियम सरल बनाने के चलते बच्चे  गलत हाथों में न चले जाएं. पर ये समझना होगा कि देश के सारे लोग चोर, उच्चके नहीं हैं. केन्द्र और सरकार दोनों से मैंने अनाथ बच्चों का आंकड़ा मांगा, लेकिन दोनों के ही पास ऐसे बच्चों का कोई आंकड़ा ही नहीं है. 

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा - एक वाकया मैं भूल नहीं पाया

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मुझे एक वाकया याद आता है, जब मैं बॉम्बे हाई कोर्ट में जज था. एक बच्चे को विदेश में रहने वाली दंपति ने गोद लिया. फिर उस दंपति ने बच्चे को वहीं किसी और दंपति को गोद दे दिया. बच्चे के अभिभावक बदलते रहे लेकिन किसी ने उसे नागरिकता दिलाने की कोशिश नहीं की. उसका ठीक से पालन पोषण नहीं हो सका. उसके बाद वो ड्रग्स केस में पकड़ा गया और भारत वापस भेज दिया गया. विदेश में ही परवरिश होने के चलते उसे कोई भारतीय भाषा भी नहीं आती थी. उसके बाद कुछ मिशनरीज से उसे मदद मिल पाई. तो ऐसे भी केस रहे हैं जहां बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया के दुरुपयोग हुआ. लेकिन इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि बड़ी संख्या में बच्चे अनाथ हैं.

ऐसे भी हैं हालात

पीयूष सक्सेना ने कहा कि ये दुरुपयोग के कुछ चुनिंदा केस हैं, मीडिया इन्हीं केस को ज्यादा दिखाता है, इसलिए ये दृष्टिकोण बना है. मुझे मुंबई के केस का पता है कि जहां एक एक महिला चौथी बार गर्भवती हुई. बच्चे के पिता के बड़े भाई ने बच्चा गोद लिया. उसने ही हॉस्पिटल का करीब तीस हजार का बिल भरा. लेकिन जब चाइल्ड वेलफेयर कमेटी को इसका पता चला तो उन्होनें दोनों लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया. इसमें भला उन्होंने कौन सा गुनाह किया! जरा उस मां के दर्द को समझिए जो निसंतान है. बच्चा गोद लेना चाहती है, पर नियमों को जटिलता के चलते उसे बच्चा गोद नहीं मिल पाता. याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्होंने कुछ सुझाव भी दे हैं, जिनके जरिये गोद लेने की प्रकिया को सरल बनाया जा सकता है.

बहरहाल जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम समझ रहे हैं कि आपकी चिन्ता वाजिब है. हम आपकी याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर रहे हैं.

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