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Saturday, April 9, 2022

लोक लुभावन वादों पर चुनाव आयोग का जबाव, हम राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द करने का कानून नहीं

 


नई दिल्ली (मानवी मीडिया): चुनाव आयोग ने उच्चतम न्यायालय को बताया है कि चुनाव से पहले मतदाताओं से सार्वजनिक निधि की बदौलत लुभावने वादे करने वाली राजनीतिक पार्टियों का पंजीकरण रद्द करने का अधिकार उसके पास नहीं है। मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 25 जनवरी को केंद्र और चुनाव आयोग को वकील अश्विन उपाध्याय की याचिका पर नोटिस जारी करके अपना पक्ष रखने को कहा था। चुनाव आयोग ने उसी नोटिस के जवाब में एक हलफनामे के जरिए अपना रुख स्पष्ट किया है। चुनाव आयोग ने कहा है कि चुनाव से पहले या बाद में मुफ्त उपहार देना या बांटना संबंधित राजनीतिक दल का नीतिगत फैसला है। इस तरह का फैसला आर्थिक रूप से व्यवहारिक है या फिर अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव वाला, यह संबंधित राज्य के मतदाताओं द्वारा विचार किया जाता है।

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हलफनामे में कहा गया है कि सरकार बनाने वाले राजनीतिक दल की नीतियों और निर्णयों को चुनाव आयोग विनियमित नहीं कर सकता है। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि हम पार्टियों के मुफ्त उपहार के वादे पर रोक नहीं लगा सकते। ऐसा करना आयोग के क्षेत्राधिकार से बाहर है।  उन्होंने कहा कि मुफ्त उपहार देना राजनीतिक पार्टियों का नीतिगत फैसला है। अदालत पार्टियों के लिए गाइडलाइन तैयार कर सकती है। सरकारी खजाने की बदौलत लुभावने वादे करने वाले दलों की मान्यता रद्द करने की कारवाई उसके (चुनाव आयोग) द्वारा किया जाना शक्तियों का दुरुपयोग होगा। चुनाव आयोग ने कहा है कि वर्तमान में उसके पास तीन आधारों को छोडक़र किसी राजनीतिक दल का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति नहीं है। इसके बारे में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बनाम समाज कल्याण संस्थान और अन्य (2002) के मामले में शीर्ष अदालत द्वारा परिभाषित किया गया है। ये आधार हैं- राजनीतिक दल द्वारा जब धोखाधड़ी और जालसाजी के आधार पर पंजीकरण प्राप्त किया गया हो, पार्टी ने संविधान और किसी अन्य आधार पर विश्वास और निष्ठा को समाप्त कर दिया हो। उपाध्याय ने अपनी याचिका में राजनीतिक दलों के कथित तर्कहीन वादों को रिश्वत और अनुचित रूप से प्रभावित करने वाला करार दिया है। याचिका में राजनीतिक दलों के इन कथित तर्कहीन वादों को संविधान के अनुच्छेद 14, 162, 266 (3) और 282 का उल्लंघन बताया गया है। इस वर्ष पांच राज्यों में हुए चुनावों से पूर्व दायर याचिका में श्री उपाध्याय ने पंजाब के संदर्भ में दावा किया था कि आम आदमी पार्टी के राजनीतिक वादों को पूरा करने के लिए पंजाब सरकार के खजाने से प्रति माह 12,000 करोड़ रुपये की जरूरत होगी, शिरोमणि अकाली दल के सत्ता में आने पर उसके वादे पूरे करने के लिए प्रति माह 25,000 करोड़ रुपये और कांग्रेस के सत्ता में आने पर उसके वादों के लिए 30,000 करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी, जबकि सच्चाई यह है कि राज्य में जीएसटी संग्रह केवल 1400 करोड़ है। याचिकाकर्ता का कहना था कि सच्चाई यह है कि कर्ज चुकाने के बाद पंजाब सरकार कर्मचारियों- अधिकारियों के वेतन-पेंशन भी नहीं दे पा रही है तो ऐसे में सत्ता में आने वाली पार्टी (अब आम आदमी पार्टी की सत्ता में है) मुफ्त उपहार देने के वादे कैसे पूरे करेगी ? याचिकाकर्ता का कहना है कि कड़वा सच यह है कि पंजाब का कर्ज हर साल बढ़ता जा रहा है। राज्य का बकाया कर्ज बढक़र 77,000 करोड़ रुपये हो गया है। वर्तमान (मार्च 2022) वित्त वर्ष में ही 30,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। गौरतलब है कि याचिका में किसी अन्य राज्य एवं भाजपा या बाकी राजनीतिक दलों के वादों का जिक्र नहीं किया गया है। मुख्य न्यायाधीश ने इस संबंध में जिक्र नहीं करने पर याचिकाकर्ता से सवाल पूछे थे।

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