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Monday, April 25, 2022

सरकार की दूसरी पारी मे विद्यालयों में पढ़ाई सुचारू रूप से की जा सके, इसके लिए कठोर कदम उठाने होंगे

 


लखनऊ (मानवी मीडिया)सरकार की दूसरी पारी में बेसिक शिक्षा परिषद व माध्यमिक के विद्यालयों में पढ़ाई सुचारू रूप से की जा सके, इसके लिए कठोर कदम उठाने होंगे*।

     जैसा की विदित है उत्तर प्रदेश स्तर पर बेसिक शिक्षा माध्यमिक शिक्षा में सैकड़ों शिक्षक संगठन बन गए हैं। निश्चित रूप से विभिन्न विभागों में बने हुए कर्मचारी संगठनों की मंशा कर्मचारियों के हित में काम करने की रही होगी परंतु आज के समय में ज्यादातर शिक्षक संगठन एक  संगठन से असंतुष्ट होने के बाद बनाए गए संगठन होते हैं।

          शिक्षक संगठन से जुड़े हुए पदाधिकारी अधिकतर विद्यालय नहीं जाते प्रांत के पदाधिकारी तो बिल्कुल भी नहीं... शिक्षकों के हित के मुद्दे लेटर पैड में दिए तो जाते हैं पर उनकी कोई खास पैरवी नहीं की जाती ताकि वोट और चंदे की राजनीति चलती रहे। शिक्षकों के मत से चुनाव प्रक्रिया अब लगभग सभी संगठनों में खत्म हो चुकी है स्वयं का मनोनयन शेष बचा है और जहां है अभी वह सिर्फ पहले से फिक्स दिखावा  प्रक्रिया। लगभग लाख शिक्षकों से उगाए गए चंदे की लड़ाई।

       ऐसा लगता है विभिन्न संगठनों के बड़े पदाधिकारी तनख्वाह बेसिक या माध्यमिक शिक्षक के रूप में ना लेकर नेता के रूप में पा रहे हैं जिसे देखकर आम शिक्षक भी हतोत्साहित होता है ।उसका भी मन दुखी होता है कि यदि वह भी किसी शिक्षक संगठन में जुड़ जाता है तो शायद दूरदराज के विद्यालय में जाने से कुछ राहत मिल जाए।

         पर इन सभी गतिविधियों में प्रभावित होती है उन हजारों पदाधिकारियों के विद्यालय ना जाने से बच्चों की पढ़ाई व्यवस्था...... कुंठित होता है वह बालमन जो कभी-कभी विशेष पदाधिकारियों के रूप में नियुक्त अपने शिक्षक को देखने से भी वंचित रह जाता है।

        अतः सरकार को चाहिए कि वह शिक्षकों के बीच से बनाए गए एकेडमिक रिसोर्स पर्सन जैसे पदों में नियुक्त शिक्षकों को,विभिन्न संघों के पदाधिकारी कि ध्यान से यदि जांच करें तो पाएंगे यह सब विशेष संगठन से जुड़े हुए रहते हैं और बार-बार यह कहिए जीवन भर उन पदों पर काबिज रहते हैं ।

         काम भले कुछ भी ना करें यदि इनके स्कूलों की स्थिति देखी जाए तो बद से बदतर क्योंकि महानुभाव लोग अपने स्कूल कभी जाते ही नहीं।

    शिक्षकों के बीच से चुनकर जिन मुट्ठी भर शिक्षकों को ब्लॉक स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने का ठेका दिया जाता है उनके खुद के स्कूल या तो विवादित होते हैं या आपसी विवाद के कारण वह सब किसी संगठन यह रिसोर्स पर्सन का पद ज्वाइन करके अपने स्कूलों से मुक्ति पाते हैं। जिन शिक्षकों की स्कूल की स्थिति बहुत ही बेहतरीन हो उन्हें ही अन्य स्कूलों में मॉडल शिक्षक व शिक्षा में सुधार के हेतु भेजा जाए।

    पर बता दें इन सभी को तनख्वाह बच्चों के पढ़ाने के नाम पर शिक्षकों  की ही मिलती है।

अतः सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अब इन पदों को खत्म करके वापस हजारों शिक्षकों को मुक्त करें ताकि वह विद्यालय जाकर अपने बच्चों को पढ़ाएं ।

      कम से कम एक क्लास में एक शिक्षक तो उपलब्ध हो सके ताकि हम भी दिल्ली और अन्य राज्यों के मॉडल स्कूल के संकल्पना में पूर्णत: खरे उतर सकें।

     अब देखते हैं आने वाले समय में हरी घास की तरह उगे हुए सैकड़ों शिक्षक संगठनों में योगी सरकार कैसे लगाम लगाती है?

            बता दें कि कई वर्षों से बेसिक शिक्षा विभाग ने मान्यता किसी भी संगठन को नहीं दी है  फिर भी आप गाहे-बगाहे रंग-बिरंगे पैड अक्सर देखते ही होंगे। जो पुराने संगठन बने हैं उनमें भी आम शिक्षकों के मत का कोई महत्व नहीं वहां जो प्रांतीय पदाधिकारी हैं वह मठाधीश हो गए हैं स्कूल जाना ना पड़े इसके लिए प्रांत के पदों पर जबरदस्ती काबिज हैं चुनाव प्रक्रिया शून्य हो चुकी है। ऐसे में इन सभी को वापस स्कूल भेजकर कम से कम विद्यालयों की प्रक्रिया को सुचारू की जा सकती है।

      प्राथमिक शिक्षक संघ के पांच भाग ,राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के दो भाग, विशिष्ट बीटीसी एसोसिएशन के दो भाग तथा अंतर्जनपदीय विशिष्ट बीटीसी एसोसिएशन, यूटा ,अटेवा, उटेक और इसी तरह जूनियर शिक्षक संघ के कई टुकड़े, पुरुषों के साम्राज्य में असंतुष्ट महिलाओं का महिला संघ इत्यादि इत्यादि यह नाम तो बानगी मात्र हैं।

           करोड़ों रुपए एक दिन के वेतन के रूप में सरकार द्वारा शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हेतु शिक्षकों पर खर्च किए जाते हैं।

@उत्तर प्रदेश की शिक्षा में सुधार

 रीना त्रिपाठी


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