जंगलों के बाहर वृक्षारोपण का रोडमैप हुआ जारी - मानवी मीडिया

निष्पक्ष एवं निर्भीक

.

Breaking

Post Top Ad

Post Top Ad

Sunday, March 13, 2022

जंगलों के बाहर वृक्षारोपण का रोडमैप हुआ जारी

लखनऊ (मानवी मीडिया)अगर किसान जंगलों के बाहर वृक्षारोपण की प्रथा को बढ़ावा दें तो उन्हें सात प्रकार के मौद्रिक और तीन प्रकार के गैर-मौद्रिक प्रोत्साहन लाभ मिल सकते हैं। इन लाभों में शामिल है इनपुट सब्सिडीप्रदर्शन-आधारित भुगतानअनुदान,  ऋणइत्यादि।

हालांकिकिसानों के लिए इन प्रोत्साहनों तक पहुंच बनाने के लिए तमाम अनुकूलन गतिविधियों की भी आवश्यकता है।

इस बात का ख़ुलासा हुआ है विश्व संसाधन संस्थान भारत (WRI India) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में। वनों के बाहर वृक्षों के विकास के लिए रोडमैप बनाने पर हुए इस अध्ययन को नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार ने जारी किया।

रिपोर्ट के जारी होने के बाद जंगलों के बाहर वनों के विकास पर एक पैनल डिस्कशन का भी आयोजन हुआ जिसमें नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड)ब्लैक बाजा कॉफी कंपनीऔर बालीपारा फाउंडेशन जैसी संस्थाओं ने अपनी बात रखी।

जो बात इस रिपोर्ट और हुई चर्चा को ख़ास बनाती है वो है कि यह रिपोर्ट जारी हुई है जलवायु प्रभावअनुकूलन और भेद्यता पर हाल ही में आईपीसीसी की जारी रिपोर्ट के बादजिसमें बढ़ते जलवायु प्रभावों के कारण देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा के लिए उच्च जोखिम पर प्रकाश डाला गया है। आईपीसीसी की यह रिपोर्ट भारत में कम से कम 700 मिलियन लोगजो जीवित रहने के लिए जंगलों और कृषि पर निर्भर हैंके लिए खतरे की घंटी से कम नहीं।

रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए डॉ. राजीव कुमार ने कहा, "मौजूदा हालात में खेती के ऐसे मॉडलजो किसानों की आय को बढ़ावा दें और साथ ही जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने में हमारी मदद करेंसमय की मांग हैं। हमारे पास पहले से ही राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर नीतियां हैं जो प्राकृतिक खेती का समर्थन करती हैं। डब्ल्यूआरआई की ताज़ा रिपोर्ट हमें इस दिशा में देश के लिए एक रणनीति बनाने के लिए एक नयी ऊर्जा देती है।"

भारतीय वन सर्वेक्षण 2019 के मुताबिक भारत में जंगलों के बाहर पेड़ों को लगाने के लिए लगभग 29.38 मिलियन हेक्टेयर भूमि उपलब्ध है। इतना ही नहीं, WRI ने अपने अध्ययन में  भारत के छह राज्योंगुजरातकर्नाटकमहाराष्ट्रओडिशापंजाब और तेलंगानामें टीओएफ (ट्री आउटसाइड फॉरेस्ट या जंगलों के बाहर पेड़) की प्रथा से जुड़े महत्वपूर्ण प्रोत्साहनअवसर और बाधाओं का भी पता लगाया है और उनके आधार पर इस रिपोर्ट में एक रोडमैप पेश किया है

आगेविषय को विस्तार देते हुए डब्ल्यूआरआई इंडिया में  निदेशकसस्टेनेबल लैंडस्केप्स एंड रिस्टोरेशनडॉ रुचिका सिंहबताती हैं, "एग्रो फॉरेस्ट्री और अर्बन फॉरेस्ट्री जैसे प्रकृति-आधारित समाधान न सिर्फ तमाम लाभ प्रदान करते हैं,बल्कि लोगों के लिए जलवायु जोखिम को कम करने का भी काम करते हैं। हमारी रिपोर्ट में इस दिशा की व्यावहारिक सम्भावनों पर ध्यान दिया गया है।"

बात अगर इस रिपोर्ट के महत्वपूर्ण निष्कर्षों की करें तो वो कुछ इस प्रकार हैं:

1.  एग्रोफोरेस्ट्री को वर्तमान नीतियों और योजनाओं के तहत सबसे अधिक समर्थन प्राप्त है।

2. अगर किसान जंगलों के बाहर वृक्षारोपण की प्रथा को बढ़ावा दें तो उन्हें सात प्रकार के मौद्रिक और तीन प्रकार के गैर-मौद्रिक प्रोत्साहन लाभ मिल सकते हैं।

3. आपूर्ति श्रृंखलानियामक तंत्र और तकनीकी सहायता की उपस्थिति एग्रोफोरेस्ट्री जैसी टीओएफ प्रथा को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

4. नए व्यापार मॉडल पेश कर निजी क्षेत्र इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

5. वर्तमान नीतियों में देशी वृक्ष प्रजातियों के साथ पारंपरिक टीओएफ प्रथाओं के लिए समर्थन की कमी है।

6. किसानों के लिए एक जागरूकता प्रणाली की कमी है।

पारंपरिक कृषि वानिकी प्रणालियों के महत्व को समझाते हुए डब्ल्यूआरआई इंडिया में सस्टेनेबल लैंडस्केप्स एंड रिस्टोरेशन की पूर्व प्रबंधकमैरी दुरईसामीबताती हैं, “बारिश पर आधारित कृषि में पेड़ अधिक लचीलापन प्रदान करते हैंवे किसानों की आय में विविधता लाते हैं और उनके लिएविशेषकर महिलाओं और भूमिहीन के लिएरोजगार सृजित करने की क्षमता रखते हैं। इन समूहों की ज़रूरतों के अनुरूप प्रोत्साहनों को देना भारत को उसके विकास और जलवायु प्रतिबद्धताओं को हासिल करने में मदद करेगा।"

जंगलों के बाहर पेड़ों को बढ़ावा देने की प्रथा को में लैंडस्केप रेस्टोरेशन की नीति न सिर्फ़ किसानों और आमजन के लिए लाभकारी होगीबल्कि देश के जलवायु लक्ष्यों के लिए भी लाभप्रद होगी।

यह अध्ययन अनुशंसा करता है कि :

• राज्य और जिले स्तर पर लैंडस्केप रेस्टोरेशन की नीति अपनाई जाएँ।

• योजना बनाने में स्थानीय आबादीमहिलाओं और हाशिए के समुदायों की जरूरतों को ध्यान में रखें।

• मौजूदा टीओएफ प्रणालियों की सुरक्षा और प्रोत्साहन के लिए सही नीतियां बनाई जाएँ।

• इनपुट सब्सिडी में सुधारमानकीकरण और अनुकून करेंसाथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसे प्रोत्साहनों का विस्तार करें।

• टीओएफ सिस्टम के लिए वृक्ष बीमा को भुगतान तंत्र के साथ बढ़ावा देने की आवश्यकता है जो हैं

किसानों के लिए आकर्षक और व्यवहार्य  हों।

• टीओएफ हस्तक्षेपों की प्रगति के साथ-साथ समावेशी निगरानी तंत्र बनाये जाएँ।

• बेहतर मिश्रित वित्त और व्यवसाय मॉडल को सुदृढ़ बनाया जाए और प्रमाणन के मानकों को विकसित किया जाये।

कुल मिलाकर डब्ल्यूआरआई की यह रिपोर्ट बेहद प्रासंगिक है। अब देखना यह है इसके निष्कर्ष और अनुशंसा किस हद तक जनहित में काम आते हैं।

Post Top Ad