हामिद अंसारी की पीड़ा सत्ता सुख से दूरी - मानवी मीडिया

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Thursday, February 3, 2022

हामिद अंसारी की पीड़ा सत्ता सुख से दूरी


26 जनवरी को ही गणतंत्र के उपलक्ष्य में जहां पूरा देश राष्ट्रीय त्यौहार मना रहा था, लोग नाच गा रहे थे, सैन्य बल लद्दाख की चोटियों से लेकर अटारी सीमा तक शानदार परेड करके भारतीयों का हृदय गौरव से और सिर शान से ऊंचा कर रहे थे ऐसे समय में इंडियन अमेरिकन मुस्लिम कौंसिल द्वारा आनलाइन आयोजित पैनल चर्चा में भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी कुछ ऐसे जहरीले बोल बोल रहे थे जिससे हर भारतीय का हृदय आक्रोश से भर उठा। प्रश्न हर हृदय में उत्पन्न हुआ कि जिस व्यक्ति को 2007 से 2017 तक पूरे दस वर्ष भारत के उपराष्ट्रपति पद पर आसीन होने का राष्ट्र ने अवसर दिया वह अपने देश को पूरी दुनिया के सामने किस तरह अपमानित करने का प्रयास कर रहा है। इस आनलाइन पैनल चर्चा में अमेरिकी सांसदों ने भी भाग लिया। अमेरिकी सांसद जिम मैकगर्वन, लेविन और जेमी रस्किन ने भी इसमें हिस्सा लिया। इन तीनों के अतिरिक्त एक सांसद मार्क का तो भारत विरोधी रुख अपनाने का इतिहास ही रहा है। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के समय भी भारत, अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते का भी विरोध किया था। भारत की जनता को अमेरिकन सांसदों के बोलने का तो ज्यादा अफसोस नहीं, क्योंकि वे हमारे विरोधी हैं और भारत की उन्नति देखकर जिन लोगों के हृदय पर सांप लोटता है वे उनमें से एक हैं, पर भारत के उपराष्ट्रपति रहे हामिद अंसारी ने जब यह कहा कि देश में असुरक्षा का वातावरण बढ़ रहा है और उन्होंने हिंदू राष्ट्रवाद की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की। श्री अंसारी ने यह आरोप लगाया कि पिछले कुछ वर्षों में हमने उन प्रवृत्तियों और प्रथाओं के उदभव का अनुभव किया है जो नागरिक राष्ट्रवादी के सुस्थापित सिद्धांत को लेकर विवाद खड़ा करती है और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की एक नई व काल्पनिक प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है। यहां के नागरिकों को उनके धर्म के आधार पर अलग करना चाहती है और देश में असहिष्णुता बढ़ा रही है। अंसारी के अनुसार आज देश में अशांति एवं असुरक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है।

याद रखना होगा कि हामिद अंसारी पहले भी कह चुके हैं कि देश में मुस्लिमों में बेचैनी का अहसास और असुरक्षा की भावना है। वैसे अंसारी ने यह सब पहली बार नहीं किया। सच्चाई यह है कि राजपद, सत्ता यूं कहिए कुर्सी छिन जाने की पीड़ा उनसे सही नहीं जा रही। किसी न किसी बहाने अब उन्हें मुस्लिम हित याद आता है। उन्हें यह बताना ही होगा कि इससे बड़ा सम्मान भारत उन्हें क्या दे सकता है कि देश के दूसरे सबसे बड़े पद पर वे दस वर्षों तक रहे। सच्चाई यह है कि अंसारी राष्ट्रपति बनना चाहते थे, जो उन्हें नहीं मिला पर जो मिल गया उसके लिए उन्होंने यह कैसे सोच लिया कि यह जीवन भर चलेगा। अंसारी से सवाल है कि उपराष्ट्रपति रहते हुए देश के अन्य बड़े जनप्रतिनिधि बने पद पर रहते हुए भी और शिक्षाविद् रहते हुए उन्होंने मुस्लिम समाज के लिए क्या किया? क्या उन्होंने मुस्लिम बेटियों को तीन तलाक और हलाला की पीड़ा से मुक्त करने के लिए कुछ किया। मुस्लिम बच्चों को शिक्षित बनाने और नए युग की नई दौड़ में शामिल करवाने के लिए अंसारी ने अगर कुछ किया है तो देश को बताना चाहिए। मैंने बार-बार श्रीमती अंसारी से भी यह प्रश्न किया था कि देश की द्वितीय महिला के पद पर आसीन श्रीमती अंसारी उन बहनों- बेटियों, माताओं का दर्द क्यों नहीं समझ पा रही जिस समाज में वह जन्म लेकर पली और बढ़ीं। अब इस प्रकार के भारत और भारतीयता विरोधी वक्तव्य देकर श्री अंसारी बार-बार उसी दर्द- ए -दिल को प्रकट कर रहे हैं जो उन्हें नई कुर्सी न मिलने से हुआ है। देश के मुस्लिम भाई-- बहनों से भी मेरी अपील है कि ऐसे नेताओं से सावधान रहें जो उनका नाम लेकर सत्ता प्राप्त करते हैं, पर सत्तासीन होकर केवल अपना और अपने परिवार का हित सोचते हैं। 


बात एक अंसारी की नहीं, कुर्सी के वियोग का दर्द बहुत गहरा है, पर आज इस दर्द से पीडि़त हर प्रांत में, हर शहर में यहां तक कि गली कूचों में मिल रहे हैं। चुनावी मौसम है। भारत के पांच प्रांतों में चुनाव हो रहे हैं। इस समय तो चुनावी मौसम का यौवन है। इसके साथ ही दल बदलने वालों और अपने परिजनों या स्वयं अपने लिए कुर्सी न मिलने की पीड़ा जिन नेताओं को है वे इसका इलाज करवाने के लिए दूसरी पार्टियों का दरवाजा खटखटा रहे हैं। एक नहीं, सभी राजनीतिक दल इस समय दल बदलुओं के लिए चैबीस घंटे की आपात सेवा दे रहे हैं। जिसे टिकट नहीं मिलता वह कुछ घंटों में ही दूसरी पार्टी के दरवाजे पर माथा टेक कर उनका चुनाव चिन्ह अपनाता है। यूं कहिए पुराना पटा उतारकर नया पटा गले में  डलवा लेता है। उत्तराखंड, पंजाब और उत्तर प्रदेश तो दल बदलने के लिए प्रथम स्थान पाने की प्रतियोगिता में है। कभी दल बदलू अर्थात आया राम गया राम हरियाणा की विशेषता माना जाता था। अब तो पंजाब में और हर राजनीतिक दल के घर आंगन में दल बदलुओं का जमावड़ा है। एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने का और कभी कभी दूसरी पार्टी में प्रवेश के बाद झटपट निकास का रास्ता भी अपनाया जा रहा है। ये पुत्र मोह द्वापर के धृतराष्ट्र की याद करवाता है। एक पुत्र मोह में धृतराष्ट्र ने महाभारत करवा दिया। यहां तो केवल पुत्र नहीं, बहू, बेटियां, दामाद, भाई- भतीजों के लिए भी दल बदले जा रहे हैं। जहां धृतराष्ट्र होंगे वहां घरों में फूट तो होगी ही। भाई भाई के लिए प्यार का उदाहरण राम -भरत का स्थापित करने वाले देश में आज कोई बाजवा, कोई चन्नी, कोई वैध आदि अनेक घर राम भरत की संस्कृति को छोडक़र कौरव संस्कृति का अनुकरण कर रहे हैं। इसलिए आज की समस्या का समाधान यह है कि मतदाता जागें। देश के नागरिक अंसारी जैसे कुर्सी रोग से पीडि़त और चुनावों में टिकट न मिलने से दुखी नेताओं का एक ही इलाज करें। इन्हें नकार दें और उन लोगों को अपना प्रतिनिधि बनाएं जो राष्ट्र धर्म, राज धर्म और लोकतंत्र के धर्म के अनुसार चल सकते हैं या चल रहे हैं।  

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