मुस्लिम वोट बैंक और ब्राह्मण वोट बैंक पर खींचातान ? - मानवी मीडिया

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Wednesday, August 25, 2021

मुस्लिम वोट बैंक और ब्राह्मण वोट बैंक पर खींचातान ?


साम्प्रदायिकता का कितना •ाहर भारतीय राजनीति में घोला जा रहा है कि पूछिये ही मत। समाजवादी दल जिसके नेता को कभी कुछ लोग मुल्ला मुलायम सिंह तक कह रहे थे आज पुन: उसी रंग में रंगे अनुभव हो रहे हैं। आज उनका बेटा अखिलेश यादव जो सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं किसी भी सम्प्रदाय का पक्ष लेना उनकी राजनीति का हिस्सा है। हम इस पर एतरा•ा करने वाले कौन हैं तथा कथित धर्म निरपेक्ष पार्टियां अपनी सफलता का आधार ही मुस्लिम समाज पर बालादस्ती बनाए रखने को ही मानती है। गत चुनाव में कांग्रेस और सपा में एक मुकाबला जैसा माहौल ही बन गया था कि कौन मुस्लिम समाज का सबसे बड़ा पक्षधर है। सच्चर रिपोर्ट के आधार पर उनका पिछड़ापन दूर करने के लिए आरक्षण का प्रतिशत भी तय कर लिया गया था। कांग्रेस ने 19 प्रतिशत कहा तो सपा ने 18 प्रतिशत। इधर चुनाव गया उधर मुस्लिम समाज को दी जाने वाली सभी रियायतें भी फुर्र हो गईं।

लगभग सभी विपक्षी दल मुस्लिम वोट बैंक को किसी न किसी तरह अपने खेमे में डालने की योजनाएं बना रहे हैं। सपा ने सन 2027 के अपने चुनावी घोषणापत्र में उन मुस्लिम युवकों को जेल से मुक्त कराने का वायदा किया था जिन पर कई वर्षों से मुकद्दमे लंबित पड़े हैं। 16 युवकों के केस वापस लेने की अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट में दी, जिसे हाईकोर्ट ने यह कहकर वापिस कर दिया कि केन्द्रीय सरकार की सहमति प्राप्त पहले कर ली जाए। वह मामला जस का तस ही रह गया अब उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं लेकिन सपा यह तो कहेगी ही कि हमने प्रयास तो किया। अब दूसरी पार्टी औवेसी की पार्टी का नया शिगूफा भी देखिये कि वह निरंतर साम्प्रदायिकता के विरुद्ध भाषण दिए जा रहा है। अब कोई पूछे कि दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों जिसे सिखों का कत्लेआम भी कहा जाता है, इसके बारे में धर्मनिरपेक्षता क्या कहती है? दिन-रात मोदी के विरुद्ध भाषण देकर कुछ लोग मुस्लिम समाज में अपनी पैठ बनाने में जुटे हैं।

कांग्रेस, जिसके सलमान खुर्शीद विदेश मंत्री भी रह चुके हैं, जो चुनाव के दिनों में मुस्लिम समाज को दी जाने वाली रियायतों में बेतहाशा इजाफा करने की बात भी कह रहे हैं। दिल्ली में हुए बठला हाऊस एन्काऊंटर को फर्•ाी बताते रहे। हालांकि उस समय के गृह मंत्री पी. चिदम्बरम ने कहा भी था कि पुलिस और दहशतगर्दों में हुआ मुकाबला असली  था। इसमें एक पुलिस अधिकारी मोहन चन्द शर्मा शहीद भी हो चुके थे। श्रीमति सोनिया गांधी ने मुस्लिम बोटरों को अपने खेमे में लाने के लिए कई तरह के पापड़ बेले। मुस्लिम वोट बैंक पर अधिकार ममाने के लिए कांग्रेस किसी भी हद तक जाने को तैयार दिखाई देती है। एक बार देश के पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह तो यहां तक कह गए थे कि देश के सभी संसाधन अल्पसंख्यकों के लिए हैं यानी देश में उन्नति के सभी द्वार मुस्लिम समाज के कारण ही खुले। फैडरल फ्रंट की आधारशिला भी मुस्लिम वोट बैंक के सामने रखी जा रही है। क्षेत्रीय दलों की एक मजबूरी है कि वे भावुक शब्दों का प्रयोग करके किसी न किसी तरह एकमुश्त मिल सकने वाले वोटों को प्राप्त कर लेना चाहते हैं। क्या 73 वर्षों के इतिहास में साम्प्रदायिकता का भूत अभी दनदना रहा है। देश में बम ब्लास्ट हुए हैं। कुछ हिन्दू और कुछ मुस्लिम युवक कानून के दायरे में लाए गए, अब इस पर एक नई बहस आरम्भ हो गई है। एक मुस्लिम महिला ने एक बार कहा था कि इंटैलीजैंस ब्यूरो के डिप्टी डायरेक्टर भी साम्प्रदायिक हैं, वे मुस्लिम युवकों के बारे में ही गुप्त सूचनाएं पुलिस तक पहुंचाते रहे हैं इस कारण सोहराबुद्दीन और इशरत जहां का फर्जी एन्काऊंटर में हत्याएं कर दी गईं । इमाम बुखारी, मौलाना फिरंगी, मौलाना कल्बे सादिक और कल्बे जब्बार मौलाना मदनी, आजम खाँ, शकील, अहमद, राशद, अल्वी, खुर्शाद, असलम जैसे सभी मुस्लिम लीडर मुस्लिमानों को मुख्यधारा से बाहर निकालने पर तुले हुए हैं फिर भी ये सभी मुस्लिम साम्प्रदायकता को धर्मनिर्र्पेक्षता का नाम देने से नही कतराते ।

बहुजन समाज पार्टी के महासचिव सतीश चन्द्र ने तो यहां तक कहा है कि चुनाव को देखते हुए कांग्रेस ब्राह्मण समाज से हमदर्दी दिखा रही है। ब्राह्मण समाज सब देख रहा है। अब वह इन सियासी चालों को समझने लगा है, चुनाव में अपने वोट के बूते ऐसे दलों को उत्तर भी देगा। ब्राह्मण और मुस्लिम वोट बैंक पर जितना हो-हल्ला मचा है यह कभी पहले नहीं देखा गया था। राहुल गांधी कांग्रेस के चुनाव प्रचार की कमान सम्भाले हुए हैं। मोदी जी चुनाव में सक्रिय तो होंगे ही फिर उनके विचारों से सहमत होना या न होना मतदाताओं की इच्छा पर निर्भर है। ऐसा लगता है कि राजग को छोड़ कर अन्य किसी दल को हिन्दुयों के वोटों की •ारुरत नहीं मुस्लिम समाज के पक्षघर दल शायद यह नहीं जानते कि भारत में मुस्लमान केवल 18 प्रतिशत और 12 प्रतिशत है। इन वोटों की प्राप्ति एक मजबूरी समझ रहे हैं।  हम अभी यह नहीं कह सकते कि मुस्लिम समाज के देवबंदीऔर बरेलवी नेता क्या सोच रहे हैं और अयोध्या, मधुरा, काशी और अन्य धार्मिक तीर्थो पर रहने वाले ब्राहम्ण चुनाव तो हो रहे हैं, अभी मुस्लिम प्रेम में यह राजनीतिक दल बहुत कुछ बोलेंगे बाद में देखते जाइये ये अजब तमाशा होगा सियासती मैदान में।

 सांभर UH

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