हर वर्ष तीज से दीपावली तक देश में त्योहारी सीजऩ शुरू हो गया है। माह अगस्त में तीज के बाद रक्षाबंधन,जन्माष्टमी से लेकर माह नवम्बर में दीपावली तक त्योहारों की धूम है। इस अवसर पर गरीब और अमीर सभी वर्ग के लोग अपने सामथ्र्य के अनुरूप घर की साफ सफाई, नए कपड़े, सोने चांदी के सामान के साथ मिठाइयां बनाने और खरीदने में व्यस्त हो जाते हंै। इस दौरान घर-घर में मीठे पकवान बनते हैं। होटलों पर मिठाइयां सज जाती हैं। त्योहारी सीजन शुरू होते ही मिलावटिए भी सक्रिय होकर आमजन के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते हैं। त्योहार आये और मिलावटिये सक्रिय न हो ऐसा हो नहीं सकता। अब तो मिलावट और त्योहार का लगता है चोली दामन का साथ हो गया है।
देश भर में मिलावट को लेकर आमजन अभी भी भयभीत है और उसे विश्वास नहीं है कि वह जो खा रहा है वह शुद्ध है। खाद्य नियामक एफएसएसएआई की एक ताजा रिपोर्ट का गहनता से विश्लेषण करें तो पाएंगे कि आज भी मिलावट को लेकर लोगों में भारी असमंजस की स्थिति है जिसके कारण देशभर में बड़े स्तर पर मिलावटखोरी की धारणा बनने से लोगों का विश्वास घटा है। आबोहवा और पानी के बाद अब खाद्य पदार्थों के सैंपल भी मानकों पर खरे नहीं उतरे हैं। विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों की प्रयोगशाला में जांच के बाद यह पुष्टि की गई है।
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) द्वारा हाल ही जारी रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 -20 में बाज़ारों से खाध पदार्थों के लिए गए एक लाख 18 हज़ार से अधिक सैम्पल में से लगभग एक चौथाई मानक स्तर पर सही नहीं पाए गए जबकि चार प्रतिशत असुरक्षित पाए गए। देश में चेकिंग के दौरान खाद्य पदार्थों के 1,18,775 सैंपल लिए गए। इनमें 3,900 सैंपल असुरक्षित पाए गए। इसके साथ ही 16,870 नमूने निम्न गुणवत्ता के पाए गए। इस दौरान अर्थ दंड के तौर पर व्यापारियों और कंपनियों से 59 करोड़ 35 लाख रुपये वसूले गए। खाद्य से जुड़े फौजदारी मामले बढ़ोतरी के साथ 4681 हो गए, वहीं आपराधिक मामले बढ़ोतरी के साथ 27,412 हो गए। आंकड़ों के मुताबिक राजस्थान में खाद्य पदार्थों की क्वालिटी सबसे ज्यादा असुरक्षित पाई गई है।
मिलावट का अर्थ है महंगी चीजों में सस्ती चीज का मिलावट। मुनाफाखोरी करने वाले लोग रातोंरात धनवान बनने का सपना देखते हैं। अपना यह सपना साकार करने के लिए वे बिना सोचे-समझे मिलावट का सहारा लेते हैं। आजकल नकली दूध, नकली घी, नकली तेल, नकली चायपत्ती आदि सब कुछ धड़ल्ले से बिक रहा है। सच तो यह है अधिक मुनाफा कमाने के लालच में नामी कंपनियों से लेकर खोमचेवालों तक ने उपभोक्ताओं के हितों को ताख पर रख दिया है। अगर कोई इन्हें खाकर बीमार पड़ जाता है तो हालत और भी खराब है, क्योंकि जीवनरक्षक दवाइयाँ भी नकली ही बिक रही हैं ।
मिलावट एक संगीन अपराध है। मिलावट पर काबू नहीं पाया गया तो यह ऐसा रोग बनता जा रहा कि समाज को ही निगल जाएगा। मिलावट के आतंक को रोकने के लिए सरकार को जन भागीदारी से सख्त कदम उठाने होंगे।