हिन्दू भावनाओं से खिलवाड़| संपादकीय - मानवी मीडिया

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Tuesday, December 8, 2020

हिन्दू भावनाओं से खिलवाड़| संपादकीय


हिन्दू समाज ने पूर्व क्रिकेटर योगराज सिंह पर हिन्दू महिलाओं के विरूद्ध अपमानजनक टिप्पणी करने और साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काने के लिए उनके विरूद्ध आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग पंजाब सरकार से की है। हिन्दी फिल्मों के नायक सैफ अली ने रावण का गुणगान किया लेकिन बाद में माफी मांग ली। प्रदेश या देश में हिन्दू भावनाओं से खिलवाड़ करने की यह कोई पहली घटना नहीं है। हिन्दू देवी-देवताओं, हिन्दू धर्म ग्रथों और हिन्दू रीति-रिवाजों का अनादर करने की घटनाएं आम सी बात हो गई है। पिछले दिनों मानांवाला में भगवान राम का पुतला जलाया गया था। पिछले समय में महाराष्ट्र में हिन्दू संतो को पीट-पीट कर मार दिया गया।  जिस देश की 80 प्रतिशत आबादी हिन्दुओं की हो वहां हिन्दुओं की भावनाओं से खिलवाड़़ हो तो इसके लिए कौन दोषी है? स्वयं हिन्दू समाज ही दोषी है क्योंकि वह स्वयं विभाजित है। हिन्दुओं का कोई मजबूत संगठन नहीं जिसकी एक आवाज पर हिन्दू समाज एकजुट हो सके। जाति, सम्प्रदायों, क्षेत्र व भाषा में बंटा हिन्दू समाज स्वतंत्रता मिलने के सात दशक बाद भी दयनीय स्थिति में है इसीलिए वह दूसरे को दोषी ठहराकर पर अपने कर्तव्य की अनदेखी कर लेता है। हिन्दू समाज की उपरोक्त स्थिति को देखते हुए अतीत में स्वामी विवेकानद ने कहा था 'हमें वही मिलता है, जिसके हम पात्र हैं। आओ, हम अपना अभिमान छोड़ दें और समझ लें कि हम पर आयी हुई कोई भी आपत्ति ऐसी नहीं है, जिसके पात्र हम नहीं थेे। कभी बेकार की चोट नहीं पड़ी, ऐसी कोई बुराई नहीं आयी, जो हमने स्वयं ही न बुलायी हो। इसका हमें ज्ञान होना चाहिये। तुम आत्मनिरीक्षण करो, तो पाओगे कि ऐसी एक भी चोट तुम्हें नहीं लगी, जो तुमने स्वयं न की हो। आधा काम तुमने किया और आधा बाहरी दुनिया ने, और इस तरह तुम्हें चोट लगी। यह विचार हमें गम्भीर बना देगा और साथ ही इस विश्लेषण से आशा की ध्वनि आयेगी, 'बाह्य जगत् पर मेरा नियंत्रण भले ही न हो, पर जो मेरे अन्दर है, जो मेरे अधिक निकट है, उस अपने अन्तर्जगत् पर मेरा अधिकार है। यदि असफलता के लिये इन दोनों के संयोग की जरूरत होती हो, यदि चोट लगने के लिये इन दोनों का इक्_े होना जरूरी हो, तो मेरे अधिकार में जो दुनिया है, उसे मैं न छोडूंगा, फिर देखूंगा कि मुझे चोट कैसे लगती है? यदि मैं स्वयं पर सच्चा प्रभुत्व पा जाऊं, तो कभी चोट न लग सकेगी।

स्वामी विवेकानद हिन्दू समाज को जगाने के लिये कहते हैं 'जो लोग अपने दु:खों या कष्टों के लिये दूसरों को दोषी बनाते हैं (और दु:ख की बात यह है कि ऐसे लोगों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है,), वे साधारणतया अभागे और दुर्बल-मस्तिष्क हैं। अपने कर्मदोष से वे ऐसी परिस्थिति में आ पड़े हैं और अब वे दूसरों को दोषी ठहरा रहे हैं। पर इससे उनकी दशा में तनिक भी परिवर्तन नहीं होता-उनका कोई भला नहीं होता, वरन् दूसरों पर दोष लादने की चेष्टा करने के कारण वे और भी दुर्बल हो जाते हैं। अत: अपने दोष के लिये तुम किसी को उत्तरदायी न समझो, अपने ही पैरों पर खड़े होने की चेष्टा करो, सब कामों के लिए अपने को ही उत्तरदायी समझो। कहो कि जिन कष्टों को हम अभी झेल रहे हैं, वे हमारे ही किये हुए कर्मों के फल हैं। यदि यह मान लिया जाये, तो यह भी प्रमाणित हो जाता है कि वे हमारे द्वारा नष्ट भी किये जा सकते हैं। जो कुछ हमने सृष्ट किया है, उसका हम ध्वंस भी कर सकते हैं, जो कुछ दूसरों ने किया है, उसका नाश हमसे कभी नहीं हो सकता। अत: उठो, साहसी बनो, वीरता दिखाओ। सब उत्तरदायित्व अपने कन्धे पर लो-याद रखो कि तुम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हो। तुम जो कुछ बल या सहायता चाहो, सब तुम्हारे ही भीतर विद्यमान है। अत: इस ज्ञानरूप शक्ति के सहारे तुम बल प्राप्त करो और अपने हाथों अपना भविष्य गढ़ डालो। गतस्य शोचना नास्ति-सारा भविष्य तुम्हारे सामने पड़ा है। सदैव स्मरण रखो कि तुम्हारा हर विचार, हर कार्य संचत रहेगा, और यह भी याद रखो कि जिस प्रकार तुम्हारे बुरे विचार और बुरे कार्य शेरों की तरह तुम पर कूद पडऩे की ताक में हंै, उसी प्रकार भले विचार और भले कार्य भी हजारों देवताओं की शक्ति लेकर सर्वदा तुम्हारी रक्षा के लिए तैयार हैं।आज देश आजाद है और हमने एक लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई है। इसमें अपने अधिकार और कर्तव्य के प्रति ईमानदार होकर ही अपनी परम्पराओं और अपनी संस्कृति का बचाव कर सकते हैं। एक विभाजित समाज की झोली में अपमान ही आता है एक जागरूक और एकजुट समाज ही स्वाभिमान पाता है। अगर देश और विदेश में हो रहे हिन्दू भावनाओं से खिलवाड़ करने के खेल को रोकना है तो हिन्दू को जागरूक व एकजुट होना पड़ेगा। ध्यान रहे कम•ाोर को न्याय कम ही मिलता है।

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