क्या है? यूपीए के पास-- संपादकीय - मानवी मीडिया

निष्पक्ष एवं निर्भीक

.

Breaking

Post Top Ad

Post Top Ad

Wednesday, December 30, 2020

क्या है? यूपीए के पास-- संपादकीय

 


अतीत में जाएं तो फिल्म दीवार में अमिताभ बच्चन अपनी धन-दौलत को लेकर शशि कपूर जो फिल्म में पुलिस अधिकारी की भूमिका निभा रहे थे और फिल्म में अमिताभ के छोटे भाई बने थे से पूछता है कि भाई मेरे पास सब कुछ है तेरे पास क्या है तो शशि कपूर का जवाब था मेरे पास मां है। यह डायलॉग आज भी उतना ही महत्व रखता है जितना उस समय रखता था। इसी फिल्मी अंदाज में शिवसेना बालठाकरे 'यूपीएÓ की वर्तमान स्थिति को लेकर प्रश्न कर रही है। शिवसेना ने अपने मुख्य पत्र सामना में शनिवार को लिखे सम्पादकीय में उपरोक्त प्रश्न उठाते हुए लिखा है ' भाजपानीत एनडीए पूरी ताकत के साथ सत्ता में है। एनडीए के पास नरेंद्र मोदी जैसा नेतृत्वकर्ता और अमित शाह जैसा राजनीतिक प्रबंधक है। लेकिन यूपीए में ऐसा कोई नहीं दिखाई देता। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए के भविष्य को लेकर भ्रम बना हुआ है। दिल्ली की सीमा पर एक महीने से किसानों का आंदोलन शुरू है लेकिन सत्तापक्ष बेफिक्र है। इस बेफिक्री के लिए मोदी-शाह नहीं बल्कि देश का विपक्ष जिम्मेदार है। निष्प्रभावी विपक्ष से लोकतंत्र का बिखराव हो रहा है। शिवसेना ने यूपीए का नेतृत्व शरद पवार को सौंपने की वकालत करते हुए कहा, राहुल गांधी व्यक्तिगत रूप से कड़ी टक्कर दे रहे हैं, लेकिन कुछ कमी रह जा रही है। यूपीए एक एनजीओ जैसा नजर आ रहा है। यहां तक कि उसके घटक दल किसान आंदोलन को गंभीरता से नहीं ले रहे। एनसीपी प्रमुख शरद पवार राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग हस्ती हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी अकेले लड़ रही हैं। विपक्षी दलों को उनके साथ खड़ा होना चाहिए था। ममता बनर्जी ने पवार से संपर्क किया और वह बंगाल जा रहे हैं। लेकिन यह कांग्रेस के नेतृत्व में होना चाहिए था। शिवसेना ने कांग्रेस नीत यूपीेए के भविष्य पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि विपक्ष की हैसियत उजड़े हुए गांव की जमींदारी जैसी है, जिसे कोई गंभीरता से नहीं लेता।सरकार को दोष देने के बजाय विपक्षी दलों को आत्ममंथन करना चाहिए। विपक्षी नेतृत्व का बड़े पैमाने पर जनता में प्रभाव हो और इसके लिए सर्वमान्य नेता की आवश्यकता होती है, लेकिन इस मामले में यूपीए पूरी तरह से हाशिये पर खड़ी है। शिवसेना ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार को यूपीेए का नेतृत्व सौंपे जाने की भी वकालत की।Ó संपादकीय में कहा गया-सरकार के मन में विरोधी दल का अस्तित्व ही नहीं है। कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर का कहना है कि राहुल गांधी की बातों को कांग्रेस भी गंभीरता से नहीं लेती। हमारे सर्वोच्च नेता को घोषित तौर पर अपमानित करने की हिम्मत सत्ताधीश क्यों दिखाते हैं, इस पर कांग्रेस की वर्किंग कमेटी में चर्चा होनी चाहिए। राहुल गांधी का मजाक उड़ाने वाले कृषि मंत्री तोमर को भी देश का किसान गंभीरता से नहीं लेता। तोमर दिल्ली की सीमा पर किसानों के आंदोलन को शांत नहीं कर पाए यह बात जितनी सच है, उतनी ही यह बात भी सही है कि कांग्रेस सहित सभी विरोधी दल इस आंदोलन को राजनीतिक धार नहीं दे पाए। एक न्यूज चैनल से बातचीत के दौरान एन.सी.पी. नेता प्रफुल्ल पटेल ने भी विपक्ष के एकजुट होने पर जोर दिया है। उन्होंने कहा, 'कांगे्रस पहले मजबूत हुआ करती थी मगर कई राज्यों में रीजनल पार्टियां मजबूत स्थिति में आ गई हैं। ऐसे में कांग्रेस का दायरा थोड़ा कम हुआ है। यू.पी.ए. में आज सीमित पार्टियां हैं, और इसका दायरा बढ़ाने की जरूरत है।Ó सम्पादकीय में कहा गया है कि 'यूपीए में शामिल दल कौन हैं, और क्या करते हैं? इसको लेकर भ्रम की स्थिति है। 'यूपीएÓ के सहयोगी दल किसान आंदोलन को गंभीरता से लेते नहीं दिखाई देते।

दूसरी ओर पवार की तारीफ में संपादकीय कहता है कि वह स्वतंत्र व्यक्तित्व हैं। उनके अनुभव का लाभ प्रधानमंत्री मोदी सहित दूसरी पार्टियां भी लेती हैं। चूंकि महाराष्ट्र की शिवसेनानीत सरकार में कांग्रेस शामिल है। इसलिए सामना ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी की सीधी आलोचना के बजाय सिर्फ संप्रग की कमियां गिनाईं। अखबार ने लिखा कि कांग्रेस में एक साल से पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है। सोनिया 'यूपीएÓ की अध्यक्ष हैं और कांग्रेस का नेतृत्व कर रही हैं। लेकिन उनके आसपास के पुराने नेता अदृश्य हो गए हैं। 'यूपीएÓ का भविष्य क्या है, इसे लेकर भ्रम है। जिस तरह 'यूपीएÓ में कोई नहीं है। लेकिन भाजपा पूरी सामथ्र्य से सत्ता में है और उनके पास मोदी जैसा दमदार नेतृत्व व शाह जैसा राजनीतिक व्यवस्थापक है।Ó शिवसेना के मुखपत्र सामना के अनुसार कांग्रेस नेता राहुल गांधी व्यक्तिगत रूप से संघर्ष करते रहते हैं। लेकिन कहीं कोई कमी जरूर है। संप्रग में नेतृत्व की कमजोरी की ओर इशारा करते हुए कहा गया कि तृणमूल कांगे्रस, शिवसेना, अकाली दल, मायावती की बसपा, अखिलेश की सपा, आंध्र में जगन की वाईएसआर कांग्रेस, चंद्रशेखर राव की टीआरएस,  नवीन पटनायक की बीजद और कुमारस्वामी के जदएस जैसे कई दल और नेता भाजपा के विरोध में हैं लेकिन वे कांग्रेस के नेतृत्व वाले 'यूपीएÓ में शामिल नहीं हुए। जब तक ये दल 'यूपीएÓ में शामिल नहीं होंगे, विपक्ष का बाण सरकार को भेद नहीं पाएगा। 'सामनाÓ में यू.पी.ए. पर साधे गए निशाने के बाद कांग्रेस ने पलटवार किया है। शिवसेना को हिदायत देते हुए कांग्रेस नेता और पूर्व सी.एम. अशोक चव्हाण ने कहा कि जो पार्टी यू.पी.ए. का हिस्सा नहीं, वह यू.पी.ए. के नेतृत्व के बारे में कांग्रेस को सलाह न दे। सोनिया जी का नेतृत्व सक्षम है। 

शिवसेना के मुख्यपत्र सामना ने कांग्रेस विशेषतया गांधी परिवार को धरातल का सत्य देखने और समझने को कहा है। कांग्रेस की स्थिति बड़ी अजीब सी है। गांधी परिवार जहां कांग्रेस के लिए एक बाधा सा बनता दिखाई दे रहा है। वहीं कांग्रेस में ऐसा नेता भी कोई दिखाई नहीं देता जो गांधी परिवार का विकल्प बन कांग्रेस की बागडोर सम्भाल सके। उपरोक्त स्थिति को समझते हुए ही सामना ने यूपीए को लेकर टिप्पणी की है। शिवसेना का शरद पवार को समर्थन देना एक राजनीतिक दूरदर्शिता व परिपक्वता की निशानी ही है। लेकिन मुश्किल यह है कि गांधी परिवार बिन कांग्रेस सूनी सी है और कांग्रेस बिन गांधी परिवार इस उलझन को सुलझाये कौन? शिवसेना जो कह रही है उसमें दम तो है।

Post Top Ad