इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- सिर्फ शादी के लिए धर्मांतरण को स्वीकार नहीं किया जा सकता     - मानवी मीडिया

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Saturday, October 31, 2020

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- सिर्फ शादी के लिए धर्मांतरण को स्वीकार नहीं किया जा सकता    

लखनऊ (मानवी मीडिया) : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि सिर्फ शादी के लिए धर्म परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने अदालत के एक पूर्ववर्ती आदेश का उल्लेख करते हुए यह निर्णय सुनाया है। याचिकाकर्ता नवविवाहित जोड़े ने अपनी अर्जी में शादी के तीन माह बाद सुरक्षा की मांग को लेकर कोर्ट से गुहार लगाई थी। प्रियांशी उर्फ सबरीन और उसके पति ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि उन्होंने स्वेच्छा से विवाह किया है, मगर लड़की के पिता इससे खुश नहीं हैं। दंपती ने कोर्ट से अपने वैवाहिक जीवन में किसी के द्वारा हस्तक्षेप न करने और पुलिस सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश देने की मांग की थी।इलाहाबाद हाईकोर्ट  कोर्ट ने कहा कि इस मामले को देखने से स्पष्ट है कि लड़की जन्म से मुस्लिम है और उसने 29 जून 2020 को धर्म परिवर्तन कर हिंदू धर्म स्वीकार किया और 31 जुलाई को उन्होंने हिंदू रीति से शादी कर ली।


इससे स्पष्ट है कि धर्म परिवर्तन सिर्फ विवाह करने के उद्देश्य से किया गया है।कोर्ट ने 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के नूरजहां बेगम केस की नजीर देते हुए कहा कि, इसमें हाईकोर्ट ने कहा था कि सिर्फ विवाह करने के उद्देश्य से किया गया धर्म परिवर्तन स्वीकार्य नहीं है। नूरजहां बेगम केस में कई याचिकाओं में एक ही प्रश्न था कि क्या सिर्फ विवाह करने के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन मान्य है, जबकि धर्म बदलने वाले को स्वीकार किए गए धर्म के बारे में न तो जानकारी थी और न ही उसमें आस्था और विश्वास ।सभी याचिकाओं में एक ही मुद्दा था कि लड़कियों ने मुस्लिम लड़के के कहने पर इस्लाम स्वीकार किया था, जबकि उनको न आस्था और विश्वास था और न ही इस धर्म के बारे में कोई जानकारी थी। कोर्ट ने कहा कि यह पवित्र कुरान के शूरा दो आयत 221 के निर्देशों के विपरीत है। अदालत ने इसे कुरान की शिक्षाओं के मद्देनजर स्वीकार्य नहीं माना है। सुप्रीमकोर्ट ने भी लिली थॉमस केस में कहा है कि इस्लाम में सच्ची आस्था के बिना सिर्फ विवाह के लिए किया गया धर्म परिवर्तन मान्य नहीं है।


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