भूखे पेट कैसे स्मार्ट होगा देश?  संपादकीय   - मानवी मीडिया

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Monday, October 26, 2020

भूखे पेट कैसे स्मार्ट होगा देश?  संपादकीय  

भारत देश विश्व के बहुत से देशों से हर क्षेत्र में आगे है, पर भूख का विषय है जो सबसे ज्यादा भयानक है उसमें हम पीछे रह जाते हैं। कितना दुख है कि जो इस बार भी वैश्विक भूख सूचकांक में आंकड़े मिले हैं उसमें 117 देशों में भारत 94वें स्थान पर है। यह ठीक है कि पिछली बार हम 102 स्थान पर थे, पर क्या हम इससे खुश हो सकते हैं? इस सूची में हम गंभीर स्थिति वाले देशों में हैं। भारत से अच्छी स्थिति नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश म्यांमार की है और जिस देश से आज हमारा मुकाबला है, युद्ध में भी और आयात निर्यात में भी, वह चीन देश हमारे से बहुत आगे हैं। शीर्ष रैंक पर जो 17 देश हैं उनमें चीन के साथ बेलारूस, यूक्रेन, तुर्की, क्यूबा, कुवैत हैं। भारत देश में हमारी इस स्थिति के लिए विशेषज्ञों ने खराब कार्यान्वयन प्रक्रिया, प्रभावी निगरानी की कमी, कुपोषण से निपटने का उदासीन दृष्टिकोण और बड़े राज्यों के खराब प्रदर्शन को दोषी ठहराया गया है। अच्छा होता इन कमियों के साथ ही रिश्वत, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद को भी दोषी ठहरा दिया जाता। कौन नहीं जानता कि जब गरीब के लिए राशन बांटा जाता है तो पूरे देश में ही ऐसा होगा कि चौक-चौराहों में अनाज से भरे ट्रक खड़े करके सत्तापक्ष का कोई नेता, पार्षद या हलका इंचार्ज बांटते हैं। कौन नहीं जानता कि खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के इंस्पेक्टरों, अधिकारियों तथा डिपो होल्डरों के बीच ऐसा अपवित्र रिश्ता बन गया है कि वे तो मोटे होते जा रहे हैं पर जिनको राशन मिलना चाहिए वे बेचारे लाइनों में धक्के खाते हैं और थोड़ा सा भी राशन मिल जाए तो समय के नेता के पांव छूते हैं। पांव छूने को वे विवश हैं क्योंकि राशन तो राशन है, आज मिला है कल समाप्त भी हो जाएगा। फिर समय की सरकार से ही तो लेना पड़ेगा। यह भी सच है कि अधिकतर राशन बांटने का काम करने वाले पार्टीबाजी को भी आधार बनाते हैं। यह बीमारी किसी एक पार्टी में नहीं, अपितु जो भी सत्तापक्ष में बैठता है वही इन कीटाणुओं से घिर जाता है। पूरी दुनिया में प्रतिदिन भूख से 24 हजार लोग मर जाते हैं। इनमें से एक तिहाई भारत के हैं और उसमें से भी बच्चे बहुत ज्यादा हैं। मुझे ऐसा लगता है किसी को इनकी चिंता नहीं। कभी भी देश की संसद में, विधानसभाओं में इन अभागों पर कोई चर्चा होते नहीं देखी गई। अभी ताजी घटना है, पंजाब के फरीदकोट में एक परिवार के मुखिया ने दोनों बच्चों और पत्नी समेत अपने को जलाकर मार दिया। कारण गरीबी था। जो पंजाब और देश की गतिविधियों से परिचित हैं वे अवश्य ही जानते हैं कि इन दिनों पंजाब में बड़े आंदोलन चल रहे हैं। किसान, अकाली दल, भाजपा, आप तथा और भी छोटे-छोटे दल, कांग्रेस भी आगे है पर पंजाब की इस घटना पर दो आंसू बहाने वाला इन सारे नेताओं में से कोई नहीं। हम सबने सुना है लीडर को रंज बहुत है, मगर आराम के साथ खाते हैं डिनर मौज से हुक्काम के साथ। जिस समय यह फरीदकोट की घटना हुई लगभग उसी समय पंजाब के मुख्यमंत्री जी ने भोजन पर सभी विधायकों को बुलाया। निश्चित ही वैसा ही शानदार भोजन परोसा गया होगा जैसा मुख्यमंत्रियों के डिनर-लंच में होता है। यह भी नहीं सोचा कि जो परिवार जलकर, तड़प-तड़प कर मर गया उनकी चिंता करके कुछ उनके परिजनों के लिए छोड़ देते। यह तो बहुत साधारण बात है, पर अपने देश में करोड़ों लोग भूखे सोते हैं। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की रिपोर्ट के अनुसार 19 करोड़ सात लाख लोग भारत में कुपोषित हैं, जिनमें से महिलाएं और बच्चे अधिक प्रभावित हैं। अपने देश में 15 से 49 वर्ष की आयु की महिलाओं में से 50 प्रतिशत में खून की कमी है। लगभग 39 फीसदी बच्चे अपनी आयु के मुताबिक कम लंबाई के और 21 फीसदी का वजन कम है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने यह बताया कि भारत 2017 के मुकाबले यद्यपि इस इंडेक्स में छह अंक ऊपर आ गया है, पर अभी भी बहुत पीछे है। कैसी विडंबना है कि एक तरफ तो लोग भूखे मरते हैं, लेकिन रिपोर्ट के अनुसार पिछले 25 वर्षों में भारत के खाना बर्बाद करने के आंकड़ों में कोई फर्क नहीं पड़ा। एक सरकारी जानकारी के अनुसार खाद्यान्न वितरण प्रणाली में सुधार और मोदी सरकार के जन कल्याण के दावों के बावजूद भारत में भूख की स्थिति गंभीर है। यह सच है कि भूख की स्थिति गंभीर है, पर इसका समाधान ढूंढने और भूखे पेट भरने के लिए कोई गंभीर दिखाई नहीं देता। यह सांसद, विधायक, केंद्र और प्रदेशों की सरकारें जब भी चर्चा करती हैं स्मार्ट सिटी बनाने की, अब स्मार्ट गांव बनाने की, विश्वस्तरीय रेल स्टेशन बनाने की और बढिय़ा-बढिय़ा हवााई जहाज हिंदुस्तान में लाने की चर्चा होती है। आश्चर्य है कि जब करोड़ों लोगों के पास छत नहीं, ऐसे में पुराने पर बहुत बढिय़ा सरकारी भवनों को छोड़कर उनके स्थान पर नए भवन बनाने के लिए बहुत उत्सुक हैं आज की सरकारें। आश्चर्य तो यह भी है कि देश का संसद भवन जो बहुत ही सुंदर और पर्याप्त स्थान वाला है अब उसके स्थान पर भी नया संसद भवन बनाने की तैयारी हो रही है। निश्चित ही करोड़ों नहीं, अरबों रुपये इस पर खर्च होंगे, पर प्रश्न यह है कि यह अनावश्यक खर्च तब तक क्यों किया जाए जब तक हिंदुस्तान के हर व्यक्ति के पेट में रोटी और सिर पर छत नहीं जब तक हिंदुस्तान का हर बच्चा शिक्षा मंदिर में नहीं पहुंच जाता। आज की स्थिति तो यह है कि देश में लाखों बच्चे रात को फुटपाथ पर, स्टेशन के प्लेटफार्म पर, सड़कों पर सोते हैं, उनमें से अधिकतर अपराधी गैंग या नशा तस्करों के हाथ में पड़ जाते हैं। उनका बचपन मिट्टी में बीतता है और जवानी या तो निराशा के अंधेरे में या फिर अपराध की दुनिया में, जिसके बाद उन्हें बहुत बार कारागार में जिंदगी बितानी पड़ती है। क्या अपने देश की सरकारें यह अहसास करेंगी कि हमारी बहुत सी कमियों, कठिनाइयों का कारण बेहिसाब बढ़ती जनसंख्या है और जनसंख्या भी अधिकतर उसी वर्ग की है जिसके पास न तन ढकने को है, न पेट भरने को। सच यह है कि वे इन नेताओं को सत्ता के शिखरों पर पहुंचाने के काम आते हैं। वैसे स्मार्ट सिटी,  स्मार्ट गांव, स्मार्ट स्टेशन तब तक जनता के साथ धोखा है जब तक हमारे बच्चे स्मार्ट नहीं हो पाए। जब तक देश की महिलाएं स्वस्थ और स्वावलंबी नहीं हो जातीं, जब तक बचपन कूड़े के ढेर पर रोटी चुनने के लिए विवश है और जब हमारे अधिकतर गांव-शहर मूल नागरिक सुविधाओं से भी वंचित हैं। वैसे आंखों देखी ज्यादा प्रभावी होती है। स्मार्ट सिटी के नाम पर क्या बन रहा है यह मैं अपने महानगर में प्रत्यक्ष देख रही हूं। नगर के महत्वपूर्ण क्षेत्र स्मार्ट बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं, केवल वीआईपी क्षेत्र या पर्यटकों के लिए बने स्थान ही थोड़ी बहुत रंग बिरंगी झलक पा रहे हैं। सच तो यह है कि आज तक कोई सरकार या शहरी विकास मंत्रालय बार-बार पूछने पर भी नहीं बता सका कि स्मार्ट की परिभाषा क्या है। इनका काम नारों और दूरदर्शनी प्रचार से चल जाता है। स्वच्छता के लिए इन्हें पुरस्कार मिलते हैं, पर शहर स्वच्छ नहीं। खुले में शौच मुक्ति के लिए बहुत से महानगरों को अपनी पीठ थपथपाने का मौका दिया जाता है, पर गंदगी उसी प्रकार फैल रही है जैसे यह नारे लगाने से पहले फैली थी। कौन इस स्मार्टनेस को स्वीकार करेगा जहां कुत्तों, चूहों, मच्छरों, मक्खियों और अब शहरों के आम घरों में छिपकलियों का भी आतंक है। प्रसिद्ध कहावत है घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने। यही सरकार की हालत है। लोगों का पेट तो भर नहीं सकी, पर स्मार्ट और बुलेट के नाम पर जनता को सब्जबाग जरूर दिखाए जा रहे है।


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