भंवर में किसान संपादकीय - मानवी मीडिया

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Thursday, October 22, 2020

भंवर में किसान संपादकीय

पिछले दिनों कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से कहा था कि वह केंद्र सरकार द्वारा बनाये तीनों कृषि कानूनों को रद्द करते हुए राज्य स्तर पर अपने कृषि कानून बनाएं। सोनिया के आदेश को मानते हुए कै. अमरेन्द्र सिंह ने पंजाब में केंद्र द्वारा बनाए कृषि कानूनों को रद्द करते हुए पंजाब के लिए नये कृषि विधेयक पारित किए हैं और राज्यपाल को इन्हें पारित करने की अपील की है। पंजाब भाजपा को छोड़ शेष दलों ने विधानसभा में इन विधेयकों को सर्वसम्मति से पारित किया। पारित विधेयकों के अनुसार अनाज मंडी से बाहर होने वाले सभी लेनदेन पर कर लगाया जाएगा। जाहिर है, इन संशोधनों से राज्य ने अपने वित्तीय हित भी साधने की कोशिश की है। इस तरह, इन विधेयकों के बाद संसद में पारित तीन कृषि कानूनों का कुछ हिस्सा राज्य में निष्प्रभावी हो गया है। कारोबार सुविधा कानून और अनुबंध कृषि कानून दोनों के मामलों में राज्य विधानसभा में किए गए संशोधन गेहूं एवं धान के संबंध में लागू होते हैं। केंद्र सरकार लगभग 22 फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा करती है और इनमें कई जैसे कपास एवं मक्का की बिक्री राज्य में एमएसपी से नीचे हुई है। कानूनों के तहत पंजाब सरकार को केंद्र के मूल कानून में परिभाषित 'कारोबार क्षेत्र में मंडी से बाहर होने वाले किसी लेनदेन पर कर लगाने का अधिकार दिया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य विधानसभा में पारित कानूनों का मतलब साफ है कि भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को पंजाब में गेहूं एवं धान की लगभग सभी खरीदारी पर 8.5 प्रतिशत शुल्क देना होगा। मोटे अनुमानों के अनुसार पंजाब ऐसी खरीदारी से करीब सालाना 500 करोड़ रुपये अर्जित करता है। आवश्यक वस्तु अधिनियम में हुए संशोधन के संबंध में पंजाब के कानूनों का कहना है कि राज्य को भी आपात परिस्थितियों में केंद्र के साथ भंडारण सीमा लगाने का अधिकार होगा। इसी तरह, राज्य विधानसभा में पारित विधेयकों में कहा गया है कि केंद्रीय कानूनों में किसानों के लिए उपलब्ध विकल्पों के अलावा कोई किसान मौजूदा कानूनों के तहत किसी भी दीवानी अदालत में अपील कर सकता है। दूसरी तरफ केंद्रीय कानूनों में स्पष्ट कहा गया है कि कारोबार सुविधा अधिनियम के तहत किसी विवाद की स्थिति में अगर संबंधित पक्ष अनुमंडलीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) या उसके द्वारा स्थापित व्यवस्था से असंतुष्ट है तो वह न्यायालय में इसे चुनौती दे सकता है। कुछ विशेषज्ञों और किसानों के समूहों ने अनुबंध आधारित खेती के मामलों में विवाद पैदा होने पर इसके समाधान ढांचे पर सवाल खड़े किए हैं। इनका कहना है कि केंद्रीय कानूनों में जिस समाधान ढांचे की व्यवस्था की गई है उसका झुकाव बड़ी कंपनियों और कारोबारियों के पक्ष में है। राज्य सरकार के इन विधेयकों में केंद्रीय कानूनों में तथाकथित खामियों को दूर करने की कोशिश की गई है। संविधान विशेषज्ञों का यह मानना है कि पंजाब विधानसभा में पारित विधेयक पूरी तरह गैर-कानूनी और गैर-संवैधानिक है। विशेषज्ञों अनुसार राज्य केवल राज्य सूची में आने वाले विषयों पर कानून बना सकता है। समवर्ती सूची में शामिल किसी विषय पर संसद में बने कानून को मानने से कोई राज्य इनकार नहीं कर सकता है। विधानसभा में कै. अमरेन्द्र सिंह सरकार का समर्थन करने वाली आम आदमी पार्टी विधायक दल के नेता ने एक बयान में कहा है कि कै. अमरेन्द्र सिंह पंजाब के लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं। चीमा ने कहा कि राज्यपाल से मिलने के उपरांत हमने कर्ई किसान नेताओं, कानूनी माहिरों और बुद्धिजीवियों के साथ इन कानूनों के बारे में राय ली है, क्योंकि विधानसभा में अचानक मेज पर रखे इन बिलों को पढऩे व पड़ताल किए जाने का किसी के पास भी समय नहीं था। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री कहते हैं कि विधानसभा में यह कानून पास होने से केंद्र के तीनों कृषि विरोधी कानून पंजाब में लागू नहीं होंगे, लेकिन क्या कोई प्रदेश सरकार केंद्र सरकार की ओर से पास किए कानूनों को रद कर सकती है? यदि नहीं तो कैप्टन ने बेवकूफ बनाया है। चीमा ने कहा कि कैप्टन कानूनी दायरे के अन्तर्गत यह यकीनी बनाएं कि प्राइवेट खरीदार के एमएसपी पर खरीद न किए जाने की सूरत में पंजाब सरकार एमएसपी और सरकारी खरीद करेगी। गौरतलब है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर सत्ता पक्ष के नवजोत सिंह सिद्धू ने भी पंजाब सरकार से मांग की थी कि राज्य अपना न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करे व किसान की फसल खरीदे। इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह ने विधानसभा में स्पष्ट किया है कि करीब 55 से 60,000 करोड़ रुपए की फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी जाती है। इतना राजस्व पंजाब सरकार के पास नहीं इसलिए यह बात व्यावहारिक नहीं है। धरातल का कटु सत्य यह भी है कि पंजाब सरकार ने जो न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर फसल खरीदने वाले को 3 वर्ष की सजा देने की बात कही है वह भी व्यावहारिक नहीं है। सत्य तो यह भी है कि कै. अमरेन्द्र सिंह ने जो कदम उठाया है वह किसान के हित को सम्मुख रख कर नहीं बल्कि कांग्रेस के राजनीतिक लाभ को सामने रख कर उठाया है। 2022 में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनावों को सम्मुख रख कर ही कै. अमरेन्द्र सिंह ने कृषि विधेयक पारित करवाए हैं। एक तीर से तीन निशाने किए गए हैं। पहला तो कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को इस कदम से खुश करना, दूसरा किसान वर्ग को खुश करने का प्रयास, तीसरा भाजपा और अकालियों सहित अन्य दलों से अधिक अपने को किसान हितैषी सिद्ध करना। कै. अमरेन्द्र सिंह ने जो कदम उठाए हैं वह क्षणिक लाभ तो दे सकते हैं लेकिन बाद में हानिकारक ही सिद्ध होंगे। 3 वर्ष की जेल की सजा के डर से अगर पंजाब में गेहूं व चावल खरीदने के लिए कोई आगे नहीं आया तो क्या पंजाब सरकार किसान की फसल खरीदने व उसका भुगतान करने की स्थिति में है, उत्तर है नहीं। पंजाब सरकार के पास न फसल खरीदने व भुगतान करने के लिए धन है और न ही भण्डारण करने के लिए जगह। पंजाब सरकार द्वारा विधेयक पारित कराने वाला कदम किसानों की भावनाओं से खिलवाड़ भी है और उन्हें भंवर में फंसाने वाले भी है। कै. अमरेन्द्र सिंह के भरोसे रहकर अगर किसान अपनी फसल बाजार में नहीं बेचता तो फिर किसे बेचे। पंजाब सरकार तो खरीदने की स्थिति में नहीं है। पंजाब का किसान अगर पंजाब से बाहर जाकर फसल बेचे तो पारित विधेयक जो अभी कानून भी नहीं बने वह लागू नहीं होते। इस तरह पंजाब का किसान राजनीतिक दलों की लड़ाई से बने भंवर में फंस गया है। इस भंवर से निकलने के लिए कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञों, कानून विशेषज्ञों को आगे आकर किसानों को व्यावहारिक हो कदम उठाने के लिए उनका मार्गदर्शन करना चाहिए। बदलते समय और परिस्थितियों के अनुसार जो परिवर्तन को स्वीकार कर अपना रास्ता नहीं ढूंढता वह पिछड़़ जाता है, यह बात किसानों को समझ कर ही भविष्य की योजना बनानी चाहिए।   


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