नई दिल्ली (मानवी मीडिया)-सुप्रीम कोर्ट ने वीरवार को केंद्र सरकार में अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमानी से कहा कि वह केंद्रीय मंत्रियों को सलाह दें कि कॉलेजियम की व्यवस्था की सार्वजनिक आलोचना करने से बचें। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि केंद्रीय मंत्रियों ने कॉलेजियम के खिलाफ जो बयान दिए हैं। उससे अच्छा संदेश नहीं गया है।
कोर्ट ने कहा कि जब तक कॉलेजियम सिस्टम है, तब तक सरकार (मोदी सरकार) को उसे ही मानना होगा। सरकार इस मामले में अगर कोई कानून बनाना चाहती है तो बनाए, लेकिन कोर्ट के पास उनकी न्यायिक समीक्षा का अधिकार है। जस्टिस कौल ने कहा कि केंद्र सरकार ने कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नामों में से 19 नाम वापस भेज दिये हैं। उऩ्होंने कहा कि जब हाईकोर्ट कॉलेजियम ने नाम भेज दिये और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उस पर मुहर लगा दी, तो फिर सरकार को क्या परेशानी है। जस्टिस कौल ने कहा कि जब आप कोई कानून बनाते हैं तो हमसे उम्मीद रखते हैं कि उसे माना जाए। वैसे ही जब हम कुछ नियम कानून बनाते हैं तो सरकार को भी उसे मानना चाहिए। अगर हर कोई अपने ही नियम मानने लगेगा तो फिर सब कुछ ठप पड़ जाएगा। जजों के नामों की सिफारिश पर केंद्र सरकार के फैसला लेने में देरी पर भी सुप्रीम कोर्ट ने खिंचाई की है।
उन्होंने आगे ये भी कहा कि आप कह रहे हैं कि अब तक मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर यानी एमओपी का मसला भी अटका पड़ा है, उस पर कोई काम आगे नहीं बढ़ा। आप कह रहे हैं कि आपने इस बाबत चिट्ठियां भेजी हैं। हो सकता है सरकार ने कुछ मुद्दों पर नजरिया साफ करने या बदलाव की गरज से लिखापढ़ी की हों। एमओपी में बदलाव या सुधार की बात है, इसका मतलब कोई तो एमओपी है। ऐसा नहीं है कि कोई एमओपी है ही नहीं। एमओपी का मसला तो 2017 में ही निपट गया था, तभी तय हो गया था कि सरकार mop में बदलाव या सुधार के सुझाव दे सकती है।