उच्च न्यायालय लखनऊ द्वारा एक छात्रा के NEET 2018 में काउंसलिंग के बाद सरकार से संबंधित मेरठ के सुभारती मेडिकल कॉलेज में MBBS की सीट आवंटन होने पर कॉलेज द्वारा तय फीस से ज्यादा फीस मांगने पर, एडमिशन ना लेने के बाद छात्रा की फीस वापस ना करने पर, कॉलेज के साथ सरकार को आगाह किया और सरकार को छात्रा की फीस 10 लाख 50 हजार 6% सालाना ब्याज के साथ वापस करने का आदेश दिया।
यह आदेश जस्टिस पंकज भाटिया की बेंच ने छात्रा गरिमा सिंह की याचिका पर दिया। याची के वकील कृष्ण लाल यादव ने बताया की छात्रा सुल्तानपुर की रहने वाली थी, सुभारती मेडिकल कॉलेज मेरठ में उसे NEET 2018 की काउंसलिंग के बाद सीट आवंटित हुआ था, जब छात्रा उक्त कालेज में एडमिशन लेने गई तो छात्रा से अवैध फीस की मांग की गई, जिस पर छात्रा महिमा सिंह ने अपना एडमिशन लेने से मना कर दिया, और एडमिशन ना लेने पर कालेज ने छात्रा द्वारा काउंसलिंग के समय जमा कराई गई फीस 10 लाख 50 हजार वापस नहीं किया जिस पर छात्रा से महानिदेश स्वास्थ्य शिक्षा उत्तर प्रदेश सरकार को सुचित किया और फिर भी फीस वापस ना होने पर छात्रा ने माननीय उच्च न्यायालय लखनऊ में याचिका दाखिल की। जिस पर माननीय उच्च न्यायालय ने छात्रा के पक्ष में फैसला सुनाते हुए सरकार से छात्रा की फीस 10 लाख 50 हजार 6% सालन ब्याज के साथ वापस करने का आदेश दिया।याचिका का राज्य सरकार एवं महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा द्वारा विरोध किया गया। कोर्ट ने सभी परिस्थितियों को गौर करने का बाद आदेश किया कि कालेज द्वारा याची से तय फीस ज्यादा फीस मांगना गलत और अवैध था और याची के समय से एडमिशन ना लेने पर कालेज को याची की फीस तुरंत वापस कर देनी चाहिए थी जबकि कोलेज ने ऐसा नहीं किया और चिकित्सा शिक्षा और उक्त कालेज राज्य सरकार के अंग हैं लिहाजा उन्हें द्वारा हुई गलती राज्य सरकार की है।