🟩न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की पीठ आईपीसी की धारा 409, 420, 467, 468, 471, 477 ए, 204, 120 बी और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 सी और 66 डी के तहत दायर केस क्राइम में जमानत पर रिहा होने की मांग करने वाले आवेदक द्वारा दायर आवेदन पर विचार कर रही थी।
🟧इस मामले में जिला सहकारी बैंक प्राइवेट लिमिटेड अलीगढ़ के एक कनिष्ठ शाखा प्रबंधक द्वारा आठ नामजद आरोपितों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करायी गयी थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि तीन सदस्यीय समिति ने जांच कर प्रतिवेदन प्रस्तुत किया है जिसके अनुसार आरोपी व्यक्तियों ने रुपये 11,83,35,436.27/ धन का गबन किया है।
🟪आवेदक के वकील श्री राजीव लोचन शुक्ला ने प्रस्तुत किया कि आवेदक के खिलाफ आरोपित सभी अपराध प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय हैं। यहां तक कि एक मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिसे मामला सीआरपीसी की धारा 325 के तहत प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा भेजा जा सकता है, सात साल के कारावास से अधिक की सजा नहीं दे सकता है।
पीठ ने कहा कि
🟫एक अपराध में मजिस्ट्रेट की शक्तियों से परे अधिकतम सजा हो सकती है, फिर भी मजिस्ट्रेट को मुकदमे के साथ आगे बढ़ना होगा, साक्ष्य रिकॉर्ड करना होगा, एक राय बनानी होगी कि आरोपी दोषी है और उसके बाद एक राय बनाएं कि आरोपी को अधिकतम सजा देना चाहिए या नहीं। उसके बाद ही वह मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को कार्यवाही प्रस्तुत कर सकता है और मजिस्ट्रेट सीधे सत्र न्यायालय में कार्यवाही नहीं प्रेषित कर सकता है।
🟥 अतः धारा 409, 420, 467, 468, 471 और 477A आई.पी.सी. अधिकतम सजा से अधिक सजा हो सकती है जो एक मजिस्ट्रेट को देने का अधिकार है, अपराध अभी भी एक मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय रहेगा। ”
उच्च न्यायालय ने कहा कि चूंकि मामले में शामिल सभी अपराध एक मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय हैं, मजिस्ट्रेट के पास आरोपी को जमानत देने की शक्ति है।
❇️उपरोक्त को देखते हुए पीठ ने जमानत अर्जी को मंजूर कर लिया।
*केस शीर्षक:- अनिल कुमार नंदा बनाम यू.पी. राज्य*
*बेंच: जस्टिस सुभाष विद्यार्थी*
*उद्धरण: आपराधिक विविध जमानत आवेदन संख्या – 2021 का 36197*