10 मई 1857 - क्रान्ति दिवस - मानवी मीडिया

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Tuesday, May 10, 2022

10 मई 1857 - क्रान्ति दिवस


लखनऊ (मानवी मीडिया)-भारतीय स्वातन्त्र्य समर की अमर गाथा का अध्याय 29 मार्च 1857 को बैरकपुर की छावनी में हुतात्मा मंगल पांडेय द्वारा अंग्रेजों के रक्तप्रवाह से स्वतंत्रता के संकल्प के रूप में विस्फोट कर लिख दिया गया था। 10 मई को मेरठ छावनी में हुए विद्रोह ने पूरे देश में स्वतंत्रता के नारों को गुंजित कर दिया । ज्वालामुखी की तरह अकस्मात प्रस्फुटित दिखाई देने वाले विस्फोट की आंतरिक हलचल नाना साहेब पेशवा की दीर्घकालिक रणनीति का परिणाम थी। लॉर्ड बेकन ने इस जनक्रांति पर अपना मत देते हुए लिखा-"धार्मिक विषयों में हस्तक्षेप,कानूनों में मनचाहे परिवर्तन,अयोग्य लोगों को आगे बढ़ाना,बढ़ती मंहगाई,सैनिकों की छटनी और मूलवासियों के अपमान की स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी 1857 की क्रान्ति।"*

           *10 मई - क्रांति दिवस पर असंख्य योद्धाओं का स्मरण करना जरूरी है जिन्होंने अपने प्राणों का उत्सर्ग कर स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया। मुख्य रूप से आज नाना साहेब पेशवा, बहादुर शाह जफर,रानी लक्ष्मीबाई, वीर कुंवर सिंह, तात्या टोपे, तोपची गौस खां, मौलवी अजीमुल्ला,बेगम हजरत महल का स्मरण किये बिना इस महान क्रांति को नही समझा जा सकता।*

       *अंग्रेजों के प्रबल सेनापति जनरल ह्यूरोज को सपने में भी लक्ष्मीबाई का पराक्रम दिखता था। उसके उद्गार थे -" लक्ष्मीबाई विद्रोहियों में सर्वाधिक वीर और सर्वश्रेष्ठ दर्जे की सेनानी थीं।" वीर सावरकर ने लिखा - "1857 में मातृभूमि के हृदय में जो ज्योति प्रज्वलित हुई, उसने आगे चलकर विस्फोट कर दिया, सारा देश बारूद का भंडार बन गया,हर ओर संघर्ष और युद्ध का तांडव होने लगा।यह ज्वालामुखी का विस्फोट था किंतु बाबा गंगादास की कुटिया के पास 18 जून 1858 को जली चिता की ज्वाला 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के ज्वालामुखी से निकली सबसे तेजस्वी ज्वाला थी।"*

तात्या टोपे ने बार बार सेना एकत्र की।बारम्बार अंग्रेजों से अलग अलग मोर्चे खोलकर संघर्ष किया जिसका अंत उनको फांसी दिए जाने के बाद ही हो सका।सेनापति के रूप में रणक्षेत्र में वे अद्वितीय थे।एक अंग्रेज लेखक ने लिखा -"यदि तात्या टोपे के समान आधा दर्जन विद्रोही भी होते तो 1857 के क्रान्तियुद्ध का इतिहास कुछ अलग ही होता।"*

           *जगदीशपुर बिहार के वीर कुंवर सिंह 80 वर्ष के महा पराक्रमी योद्धा थे।उनका चरित्र और पराक्रम निश्चय ही भीष्म पितामह के समान वज्र जैसा था।उनके पराक्रम के सामने अंग्रेज सेना की एक न चली।लगातार 08 माह तक उन्होंने संघर्ष किया और कलकत्ता तक अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी।एक युद्ध के दौरान नाव पर उनके बाएं हाँथ में गोली लग गई। इस महावीर ने तत्काल अपनी तलवार से अपनी भुजा काटकर गंगा को समर्पित कर दिया।गंगा मैय्या को उनके भक्तों ने अनेक चीजे समर्पित की होंगी किंतु स्वातंत्र्यवीर कुंवर सिंह की यह भेंट अनुपम थी।* 

         *बेगम हजरत महल को अवध की लक्ष्मीबाई कहना अनुपयुक्त न होगा। उन्होंने अवध की धरती पर अपने पराक्रम से अंग्रेजों के छक्के  छुड़ा दिए।* 

          *1857 की क्रांति विश्व की एक महान आश्चर्यजनक, अत्यंत प्रभावी और परिवर्तनकारी घटना थी। इसने न केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद की चूलें हिला दीं अपितु यूरोप में भी नवचेतना जागृत की। यह किसी उत्तेजना से उत्पन्न आंदोलन नहीं था। इसके राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक तीनों आयाम थे।*

          *कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान की "खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी" एक कालजयी रचना है। बुंदेलखंड में प्रचलित लोकगीत की कुछ पंक्तियां - " ख़ूबई लड़ी रे मर्दानी, ख़ूबई जूझी रे मर्दानी बा तो झांसी वारी रानी। अपने सिपहियन को लड्डू खबावें , आपई पियें ठंडा पानी बा तो झांसी वारी रानी"*

          *क्रांति दिवस पर 1857 के महान स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानियों को कोटि कोटि नमन।

 रीना त्रिपाठी भारतीय नागरिक परिषद


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