लखनऊ (मानवी मीडिया) क्या एक अपराध/FIR के लिए यूपी गैंगस्टर एक्ट लागू किया जा सकता है? जानें सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
⚫मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1986 के तहत एक व्यक्ति पर मुकदमा चलाया जा सकता है, भले ही अधिनियम की धारा 2(बी) में सूचीबद्ध किसी भी असामाजिक गतिविधियों के लिए केवल एक अपराध / प्राथमिकी / आरोप पत्र दायर किया गया हो।
🔘इस मामले में सवाल यह था कि क्या ‘गैंगस्टर‘ द्वारा किया गया एक भी अपराध ऐसे गिरोह के सदस्यों पर गैंगस्टर एक्ट लागू करने के लिए पर्याप्त है?
🟤इस मामले में, *इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1986 के तहत* कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
🟢सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक अपील में, आरोपी-अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि केवल एक प्राथमिकी/चार्जशीट के आधार पर अपीलकर्ता को ‘गैंगस्टर’ और/या ‘गैंग’ का सदस्य नहीं माना जा सकता है।
🔵इस याचिका का विरोध करते हुए, राज्य ने तर्क दिया कि एक भी प्राथमिकी / आरोप पत्र के मामले में भी, गैंगस्टर अधिनियम की धारा 2 (बी) में सूचीबद्ध असामाजिक गतिविधियों के लिए गैंगस्टर अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है।
🟣 *न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि गैंगस्टर अधिनियम, 1986* में कोई विशेष प्रावधान नहीं है, जैसे कि महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1999 और गुजरात आतंकवाद और संगठित अपराध अधिनियम, 2015 में है कि गैंगस्टर अधिनियम के तहत किसी आरोपी पर मुकदमा चलाते समय, एक से अधिक अपराध या प्राथमिकी / आरोप पत्र होना चाहिए।
🛑पीठ ने कहा कि इस मामले में मुख्य आरोपी पी.सी. शर्मा, एक गिरोह का नेता और मास्टरमाइंड था, और उसने अन्य सह-आरोपियों के साथ आपराधिक साजिश रची, जिसमें अपीलकर्ता भी शामिल था, मृतक साधना शर्मा की हत्या को मौद्रिक लाभ के लिए किया था, क्योंकि परिवार के बीच संपत्ति विवाद था य।
🟠सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि उच्च न्यायालय ने धारा 482 सीआरपीसी के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए गैंगस्टर अधिनियम, 1986 की धारा 2/3 के तहत अपीलकर्ता-आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को खाली करने से सही ढंग से इनकार कर दिया, पीठ ने अपील को खारिज करते हुए कहा