शिक्षक का शिष्य अखिलेश को ‘विजयी भव:’ का आशीष - मानवी मीडिया

निष्पक्ष एवं निर्भीक

.

Breaking

Post Top Ad

Post Top Ad

Thursday, July 1, 2021

शिक्षक का शिष्य अखिलेश को ‘विजयी भव:’ का आशीष


इटावा (मानवी मीडिया) : समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के शैक्षिक गुरू अवध किशोर बाजपेई को यकीन है कि उनका योग्य शिष्य 2022 में न सिर्फ राज्य की सत्ता की बागडोर एक बार फिर अपने हाथ में लेगा बल्कि भविष्य में प्रधानमंत्री का पद हासिल करेगा।जिले के सिविल लाइन इलाके के निवासी सेवानिवृत्त अंग्रेजी के प्रवक्ता अवध किशोर बाजपेई ने गुरूवार को ‘यूनीवार्ता’ से कहा “ अखिलेश यादव मेरे प्रिय शिष्यों में शामिल है जो योग्य और जुझारू हैं और प्रदेश की जनता की भलाई के लिये समर्पित हैं। 2022 मे उत्तर प्रदेश की कमान उनके हाथ में एक बार फिर से होगी, इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिये। ”

 उन्होने कहा कि अपने जुझारूपन और सच के रास्ते में चलने की आदत उनको जनता के बीच लोकप्रिय बना रही है। उनकी नेतृत्व क्षमता पर देश के लगभग सभी राजनीतिक दलों को भरोसा है। यहां तक कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी उनकी लोकप्रियता से डरती है और उन्हे विजय की राह में सबसे बड़ी बाधा मानती है और यही एक सच्चे जनसेवक की पहचान है। उन्होने कहा कि आने वाले दिनो में श्री यादव के देश का प्रधानमंत्री बनने की प्रबल संभावनाये हैं।कचहरी रोड पर रहने वाले अवध किशोर बाजपेई कर्म क्षेत्र इंटर कालेज से रिटायर हो चुके हैं। अंग्रेजी के शिक्षक रहे अवध किशोर बाजपेई को शुरुआती दौर में अखिलेश यादव को उस समय अंग्रेजी पढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी गई जब अखिलेश पढ़ाई में काफी कमजोर थे। हालांकि 2012 में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो चुके अखिलेश धारा प्रवाह अंग्रेजी मे माहिर खिलाडियो को मात देते है।श्री बाजपेई उस दिन को याद करते हैं जब मुलायम सिंह यादव ने सेंट मेरी स्कूल में अखिलेश की पढ़ाने की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी थी । इसके बाद बाजपेई ने ही अखिलेश यादव को सैनिक स्कूल के लिए तैयार किया और खुद वर्ष 1983 में अखिलेश यादव को धौलपुर के मिलिट्री स्कूल लेकर के गए। अखिलेश ने छठी क्लास में दाखिले के लिए परीक्षा दी थी। उन्होने कहा कि एक बार प्रिंसिपल ने अखिलेश से अंग्रेजी में पूछा कि हेलमेट का क्या काम है, अखिलेश ने बेझिझक होकर अंग्रेजी में जवाब दिया कि यह शरीर की रक्षा के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि मस्तिष्क शरीर का संचालक होता है और हेलमेट मस्तिष्क एक की रक्षा करता है।12 साल के बच्चे से ऐसा साफ-साफ जवाब सुनकर के प्रिंसिपल ने अखिलेश को तुरन्त दाखिला दे दिया । बाजपेई बताते हैं उस वक्त भी अखिलेश को इस बात का गुरूर नहीं था कि मुलायम सिंह यादव के बेटे हैं बल्कि वो शुरुआत से ही काफी विनम्र थे । खास बात तो यह है कि अखिलेश आज भी बहुत ही विनम्र और मृदुभाषी है ।श्री बाजपेई बताते हैं कि वह अक्सर अखिलेश के चाचा शिवपाल सिंह यादव के साथ,जो धौलपुर जाकर उनकी पढ़ाई के संबंध में जानकारी लिया करते थे । अखिलेश कक्षा सात के रहे होेगे, वो शिवपाल और उनकी पत्नी धौलपुर छोडने के लिए गये तो अखिलेश ने ताजमहल देखने के इच्छा जताई जिसकी तस्वीर आज भी सुरक्षित रखी हुई है। बाजपेई के पास अखिलेश यादव का वो अंर्तरदेशीय पत्र आज भी यथावत रखा हुआ है जो अखिलेश यादव ने धौलपुर से अपने शैक्षिक गुरू अवध किशोर बाजपेई को क्लास मे प्रमोशन के बाद लिखा था ।पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का धौलपुर राजस्थान से गहरा जुड़ाव रहा है । राष्ट्रीय मिलिट्री स्कूल में 12 वीं तक पढ़ाई के दौरान अखिलेश धौलपुर में ही रहे हैं । इटावा के सेंट मैरी स्कूल में तीसरी क्लास में अखिलेश के साथी रहे मुकेश पालीवाल का कहना है कि अखिलेश को बचपन से ही राजनीति का फलसफा पता था । वह याद करते हैं कि उन्होंने लोक दल के दिनो मे उनके घर में लोकदल के बिल्ले हुआ करते थे । जिनको लाकर वे हम लोगों को दिया करते थे । तब हम को बिल्लो का मतलब भी नहीं पता था हम तो बस उन्हें खिलौना ही समझते थे लेकिन बीते कुछ सालों में मैं समझ गया कि अखिलेश में शुरू से राजनीति मे नेतृत्व करने के गुण थे।अखिलेश की जिंदगी से जुड़ी एक बात ऐसी भी है जो बहुत से कम ही लोगों को नहीं पता होगी । लोगों को यह तो पता होगा कि उनके बचपन का नाम दीपू था लेकिन यह नहीं पता होगा कि अखिलेश जब सेंट मेरी स्कूल में दाखिले के लिए पहुंचे तो उनके साथ ना मुलायम थे ना से ही शिवपाल उनके साथ अवध बिहारी वाजपेई के अलावा परिवार के एक करीबी वकील गए थे । जब वहां अखिलेश से नाम पूछा गया तो अखिलेश ने अपने घर का नाम दीपू ही बता दिया जब वहां कहा गया कि यह नाम नहीं लिखा जा सकता तो आनन-फानन में वही उनका नाम की उनसे अखिलेश हो गया।अखिलेश के शैक्षिक गुरु अवध किशोर ने बताया कि कक्षा छह में अखिलेश का चयन धौलपुर सैनिक स्कूल में हो गया था। बाद के दिनों में संभवत मुलायम सिंह के राजनीति में होने के चलते अखिलेश ने भी राजनीति में पदार्पण किया, नहीं तो आज वे भारतीय सेना में जनरल होते । उनका कहना है कि अखिलेश का कद ही उनकी गुरु दक्षिणा है।अवध किशोर ने बताया कि मुलायम सिंह यादव ने 1981 में अपने लगभग 10 साल के बेटे टीपू (बचपन के अखिलेश यादव) का हाथ उनको थमाकर उनकी पढ़ाई का जिम्मा सौंपा था। अखिलेश को अन्य बच्चों की तरह खेलना खूब पसंद था, लेकिन जो पढ़ाया समझाया जाए उसे कंठस्थ कर लेते थे

Post Top Ad