आखिर क्या है तबलीगी जमात, जिसकी मरकज में शामिल लोगों की मौत से देश में मचा हड़कंप - मानवी मीडिया

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Tuesday, March 31, 2020

आखिर क्या है तबलीगी जमात, जिसकी मरकज में शामिल लोगों की मौत से देश में मचा हड़कंप




  • राष्ट्रीय मंगलवार  23 मार्च, 2020 |नई दिल्ली कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए देशभर में 14 अप्रैल तक लॉकडाउन है। सरकार का भरपूर प्रयास है कि इस महामारी को हमारे देश में फैलने से किसी भी हालत में रोका जाए। इसी बीच, सोमवार को तेलंगाना से एक ऐसी खबर आई जिससे पूरे देश में हड़कंप मच गया। कोरोना वायरस के चलते तेलंगाना में छह लोगों की मौत हो गई। बताया गया कि ये सभी दिल्ली में आयोजित तबलीगी जमात के एक बड़े धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने के बाद वापस घर लौटे थे।इसके बाद से हर कोई जानना चाह रहा है कि आखिर क्या है ये 'तबलीगी जमात'। कुछ दिनों पहले ही दिल्ली के निजामुद्दीन में तबलीगी जमात का कार्यक्रम आयोजित हुआ था, जिसमें 400 के करीब लोग शामिल हुए थे। तेलंगाना के छह लोगों की मौत के बाद अभी तक 24 लोग कोविड-19 के पॉजिटिव पाए गए हैं। इसके बाद अब यह आशंका जताई जा रही है कि इसमें शामिल 200 के करीब लोग कोरोना के संक्रमित हो सकते हैं। ये है तबलीगी जमात और मरकज का मतलबतबलीगी जमात और मरकज... । तबलीगी का मतलब होता है, अल्लाह के संदेशों का प्रचार करने वाला। जमात मतलब, समूह और मरकज का अर्थ होता है मीटिंग के लिए जगह। यानी की अल्लाह की कही बातों का प्रचार करने वाला समूह। तबलीगी जमात से जुड़े लोग पारंपरिक इस्लाम को मानते हैं और इसी का प्रचार-प्रसार करते हैं। इसका मुख्यालय दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में स्थित है। एक दावे के मुताबिक इस जमात के दुनिया भर में 15 करोड़ सदस्य हैं। 20वीं सदी में तबलीगी जमात को इस्लाम का एक बड़ा और अहम आंदोलन माना गया था।हरियाणा के इस जिले से इस तरह हुई शुरुआतकहा जाता है कि 'तबलीगी जमात' की शुरुआत मुसलमानों को अपने धर्म बनाए रखने और इस्लाम का प्रचार-प्रसार तथा जानकारी देने के लिए की गई। इसके पीछे कारण यह था कि मुगल काल में कई लोगों ने इस्लाम धर्म कबूल किया था, लेकिन फिर वो सभी हिंदू परंपरा और रीति-रिवाज में लौट रहे थे। ब्रिटिश काल के दौरान भारत में आर्य समाज ने उन्हें दोबारा से हिंदू बनाने का शुद्धिकरण अभियान शुरू किया था, जिसके चलते मौलाना इलियास कांधलवी ने इस्लाम की शिक्षा देने का काम प्रारंभ किया। तबलीगी जमात आंदोलन को 1927 में मुहम्मद इलियास अल-कांधलवी ने भारत में हरियाणा के नूंह जिले के गांव से शुरू किया था। इस जमात के छह मुख्य उद्देश्य बताए जाते हैं। "छ: उसूल" (कलिमा, सलात, इल्म, इक्राम-ए-मुस्लिम, इख्लास-ए-निय्यत, दावत-ओ-तबलीग) हैं। तबलीगी जमात का काम आज दुनियाभर के लगभग 213 देशों तक फैल चुका है।इस तरह करता है काम तबलीगी जमात के मरकज से ही अलग-अलग हिस्सों के लिए तमाम जमातें निकलती है। इनमें कम से कम तीन दिन, पांच दिन, दस दिन, 40 दिन और चार महीने तक की जमातें निकाली जाती हैं। एक जमात में आठ से दस लोग शामिल होते हैं। इनमें दो लोग सेवा के लिए होते हैं जो कि खाना बनाते हैं। जमात में शामिल लोग सुबह-शाम शहर में निकलते हैं और लोगों से नजदीकी मस्जिद में पहुंचने के लिए कहते हैं। सुबह 10 बजे ये हदीस पढ़ते हैं और नमाज पढ़ने और रोजा रखने पर इनका ज्यादा जोर होता है। इस तरह से ये अलग इलाकों में इस्लाम का प्रचार करते हैं और अपने धर्म के बारे में लोगों को बताते हैं।1927 में हुई पहली मरकजहरियाणा के नूंह से 1927 में शुरू हुए इस तबलीगी जमात की पहली मरकज 14 साल बाद हुई। 1941 में 25 हजार लोगों के साथ पहली मीटिंग आयोजित हुई और फिर यहीं से ये पूरी दुनिया में फैल गया। विश्व के अलग-अलग देशों में हर साल इसका वार्षिक कार्यक्रम आयोजित होता है। जिसे इज्तेमा कहते हैं।




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